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________________ ६६० द६७ आलापगत विशेष विषय सूची ८३ क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. | क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. १५ अयोगिकेवलीके एक आयुप्राणका सम्यग्दृष्टि जीवोंके भावसे छहों ___समर्थन लेश्याओंके अस्तित्वका प्रतिपादन ६५६ १६ कालाकालाभास द्रव्यलेश्याका ३१ औदारिकमिश्रकाययोगी सयोगिस्वरूप ४४८ १७ तिर्यचोंके अपर्याप्तकाल में क्षायिक केवलीके आयु और कायबल प्राणों के अतिरिक्त शेष प्राणोंके और क्षायोपक्षमिक सम्यक्त्वका अभावका समर्थन ६५८ समर्थन ३२ औदारिकमिश्रकाययोगी सयोगि१८ संयतासंयत तिर्योंके क्षायिक केवलीके केवल एक कापोतलेश्या सम्यक्त्वके अभावका कारण होनेका समर्थन १९ अयोगिकेवलीके अनाहारकत्वसमर्थन ३३ आहारककाययोगी जीवोंके स्त्रीवेद नपुंसकवेद, मनःपर्ययज्ञान और २० असंयतसम्यक्त्वी मनुष्यके अप परिहारविशुद्धि संयमके अभावके र्याप्त कालमें एक पुरुषवेद तथा कारणका प्रतिपादन भावलेश्याओंके होनेका कारण । ३४ कार्मणकाययोगी जीवोंके अनाहार२१ मनुष्यनियोंके आहारकशरीर न कत्वका समर्थन होनेका कारण २२ देवोंके पर्याप्तकालमें छहों द्रव्य ३५ स्त्रीवेदी प्रमत्तसंयतके परिहार संयमादिके अभावका प्रतिपादन लेश्याओंका समर्थन १२९ ३६ विवक्षित ज्ञान और दर्शनमार्ग२३ देवोंके अपर्याप्तकालमें उपशमसम्यक्त्वका सद्भाव-समर्थन । ___णाके आलाप कहनेपर शेष ज्ञान और दर्शनके नहीं बतानेके कारण २४ अनुदिशादि देवोंके पर्याप्तकालमें का प्रतिपादन उपशमसम्यक्त्वके अभावका ७२६ विशिष्ट समर्थन ५६६ ३७ मनःपर्ययज्ञानके साथ द्वितीयोप२५ जीवसमासोंके एकसे लगाकर ५७ शमसम्यक्त्वके होने और प्रथमोभेदों तकका निरूपण शमसम्यक्त्वके नहीं होनेका २६ बादर जलकायिक जीवोंके कारण ७२७ विचार ६०९ । ३८ कृष्णलेश्यावाले जीवोंके अपर्याप्त२७ मनोयोगियोंके वचन और काय कालमें वेदकसम्यक्त्वके अस्तिप्राणके अस्तित्वका समर्थन त्वका प्रतिपादन ७५२ २८ सयोगिकवलीके जीवसमासके |३९ शुक्ललेश्यावाले सासादनसम्यग्दृष्टि अस्तित्वका समर्थन जीवोंके औदारिकमिश्रकाययोगके २९ औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंके अभावका प्रतिपादन ७९४ द्रव्यसे एक कापोतलेश्या अथवा ४० उपशमसम्यक्त्वीके मनःपर्ययज्ञानके छहों लेश्याएं और भावसे छहों सद्भाव-असद्भावका विचार ૮૨૨ लेश्याओंके अस्तित्वका प्रतिपादन ६५३ ४१ संयमादि मार्गणाओंमें असंयमादि ३० औदारिकमिश्रकाययोगी असंयत विपक्षी भावोंके बतानेका कारण नका कारण ८२५ ६८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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