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________________ (५०) ही कहा है कि शामकुंडसे कितने ही काल पश्चात् तुम्बुलूराचार्य हुए । तुम्बुलूराचार्य के पश्चात् कालान्तर में समन्तभद्र स्वामी हुए, जिन्हें इन्द्रनन्दिने ' ताकि कार्क ' कहा है । उन्होंने दोनों सिद्धान्तों का अध्ययन करके षट्खण्डागमके पांच खंडोंपर ४८ हजार श्लोकप्रमाण टीका रची। इस काकी भाषा अत्यंत सुंदर और मृदुल संस्कृत थी ४ समन्तभद्रस्वामीकृत टीका यहां इन्द्रनन्दिका अभिप्राय निश्चयतः आप्तमीमांसादि सुप्रसिद्ध ग्रन्थोंके रचयितासे ही है, जिन्हें अष्टसहस्त्रीके टिप्पणकारने भी ' तार्किकार्क ' कहा है । यथा - तदेवं महाभागैस्तार्किका रुपज्ञातां ******* आप्तमीमांसाम् ........... धवला टीकामें समन्तभद्रस्वामी के नामसहित दो अवतरण हमारे दृष्टिगोचर हुए हैं । इनमें प्रथम पत्र ४९४ पर है । यथा- ' तहा समंतभद्द सामिणा वि उत्तं, विधिर्विषक्त प्रतिषेधरूप" यह श्लोक बृहत्स्वयम्भू स्तोत्रका है । दूसरा अवतरण पत्र ७०० पर है । यथातथा समंतभद्रस्वामिनाप्युक्तं, स्याद्वादप्रविभक्तार्थविशेषव्यंजको नयः । " Jain Education International ( अष्टस. पृ. १ टिप्पण ) यह आप्तमीमांसा के श्लोक १०६ का पूर्वार्ध है । और भी कुछ अवतरण केवल ' उक्तं च ' रूपसे आये हैं जो बृहत्स्वयम्भूस्तोत्रादि ग्रन्थों में मिलते हैं। पर हमें ऐसा कहीं कुछ अभी तक नहीं मिल ग्रंथसंदर्भरूपस्य चूडामण्यभिधानस्य महाशास्त्रस्यान्येषां च शब्दागम- युक्तत्यागम- परमागम - विषयाण तथा काव्य-नाटक कलाशास्त्र - विषयाणां च बहूनां ग्रन्थानामपि भाषाकृतानामुपलब्धमानत्वात् । ( समन्तभद्र. पू. २१८ ) "इत्यादि १ तस्मादारात्पुनरपि काले गतवति कियत्यपि च । अथ तुम्बुलूरनामाचार्योऽभूत्तुम्बुलूरसद्ग्रामे । षष्ठेन विना खण्डेन सोऽपि सिद्धान्तयोरुभयो : ॥ १६५ ॥ चतुरधिकाशीतिसहस्रग्रन्थरचनया युक्ताम् । कर्णाटभाषयाऽकृत महतीं चूडामणि व्याख्याम् ॥ १६६ ॥ सप्तसहस्रग्रन्थां षष्ठस्य च पंचिकां पुनरकार्षीत् । इन्द्र. श्रुतावतार. १६७ ॥ २ कालान्तरे ततः पुनरासंध्यां पलरि(?) तार्किका भूत् ॥ श्रीमान् समन्तभद्रस्वामीत्यथ सोऽप्यधीत्य तं द्विविधम् । सिद्धान्तमतः षट्खण्डागमगतखण्डपञ्चकस्य पुनः ॥ १६८ ॥ अष्टौ चत्वारिंशत्सहस्रसद्ग्रन्थरचनया युक्ताम् । विरचितवानति सुन्दरमृदुसंस्कृतभाषया टीकाम् ॥ १६९ ॥ For Private & Personal Use Only इन्द्र. श्रुतावतार. www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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