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________________ प्रतियो में छूटे हुए पाठ सूचना - ये पाठ केवल निर्देशमात्रके लिये दिये जाते हैं । इस प्रकार के छूटे हुए पाठ प्रतियों में बहुत अधिक हैं । पृष्ट पंक्ति प्रति कहांसे २५ ८ अ ३९ ७ अ ५२ ६ क ५३ ३ अ ५६ २ अ ६६ १० अ ८१ ४ अ ९३ ९ आ परमाणुं जाणदि ९४ १ अ उक्कस्सेण ... १२८ ५ अ १३० १ अ १७४ २ क १९३ ८ अ १९५ १ अ २२३ ९ अ २२४ ४ आ २३० ७ क २५३ ४. अ २८३ ५ आ २९० ७ आ २९८ ८ आ ३१० ९ क ३४८ ८ आ ३६१ ३ क चइदं । जीवियासाए मंगलकरणीयं नां सिद्धस्थरतेभ्यो रनैकदेशस्य प्रतिसमयमसंख्यात तदो सुभद्दो -स्य बहुषु Jain Education International एदस्स पयाडउत्तरपयाड इष्टत्वात् सर्वत्र सर्वदा वाच्यवाचक तदो अंतोमुहुत्तं मणुसगइपा जीवानां सादृश्यं तस्सेव संशयानध्यव... पदेसा अनंतविरोध इति सर्वाभिः अपज्जन्त्ताण वि अस्थि अकषायः मिथ्यात्योदयस्य सत्त्वात् For Private & Personal Use Only कहां तक पदिदं सरीरं । मंगलकत्ता । स्थरता कृत्स्नकर्मक्षयकर्तृण सततमभ्यर्चनम् । -मेगस धारया पमाणं छव्विहं असंखेज्जदि अणुक्क सोही जाणदि एवदि खेत्ते पयडिट्टिदिबंधो विरोधः अदृष्टविषये तस्यास्त्विति चेन्न पुरिसवेदं खवेदि अहवा गुणद्वारेण संखेजगुणा केवलिनो वचनं दव्यवग्गणा www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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