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________________ ३७६ ] छक्खंडागमे जीवाणं [१, १, १२७. संयम इति चेन्न, प्रागविद्यमानपरिहार यपेक्षया ताभ्यामस्य भेदात् । ततः स्थितमेतत्ताभ्यामन्यः परिहारसंयम इति । परिहारर्दुरुपरिष्टादपि सवात्तत्रास्यास्तु सस्वमिति चेन्न, तत्कार्यस्य परिहरणलक्षणस्यासस्वतस्तत्र तदभावात् । तृतीयसंयमस्याध्वानप्रतिपादनार्थमाह सुहुम-सांपराइय-सुद्धि-संजदा एकम्मि चेव सुहुम-सांपराइयसुद्धि-संजद-ट्ठाणे ।। १२७ ।। सूक्ष्मसाम्परायः किमु एकयम उत पञ्चयम इति ? किं चातो यद्येकयमः पश्चयमान मुक्तिरुपशमश्रेण्यारोहणं वा सूक्ष्मसाम्परायगुणप्राप्तिमन्तरेण तदुभयाभावात् । अथ पश्चयमः एकयमानां पूर्वोक्तदोषौ समाढौकेते । अथोभययमः एकयमपञ्चयमभेदेन सूक्ष्मसाम्परायह संयम नहीं हो सकता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, पहले अविद्यमान परंतु पीछेसे उत्पन्न हुई परिहार ऋद्धिकी अपेक्षा उन दोनों संयमोंसे इसका भेद है, अतः यह बात निश्चित हो जाती है कि सामायिक और छेदोपस्थापनासे परिहार-शुद्धि-संयम भिन्न ही है। शंका-परिहार ऋद्धिकी आगेके आठवें आदि गुणस्थानों में भी सत्ता पाई जाती है, अतएव वहां पर इस संयमका सद्भाव मान लेना चाहिये ? समाधान- नहीं, क्योंकि, यद्यपि आठवें आदि गुणस्थानोंमें परिहार ऋद्धि पाई जाती है परंतु वहां पर परिहार करनेरूप उसका कार्य नहीं पाया जाता है, इसलिये आठवें आदि गुणस्थानों में परिहार-शुद्धि-संयमका अभाव कहा गया है। अब तीसरे संयमके गुणस्थानका निरूपण करनेके लिये सूत्र कहते हैं सूक्ष्मसांपराय-शुद्धि-संयत जीव एक सूक्ष्मसांपराय-शुद्धि-संयत गुणस्थानमें ही होते हैं ॥ १२७॥ शंका--सूक्ष्मसांपरायसंयम क्या एक यमरूप है अथवा पांच यमरूप? इनमें से यदि एक यमरूप है तो पंचयमरूप छेदोपस्थापनासंयमसे मुक्ति अथवा उपशमश्रेणीका आरोहण नहीं बन सकता है, क्योंकि, सूक्ष्मसांपरायगुणस्थानकी प्राप्तिके विना मुक्तिकी प्राप्ति और उपशमश्रेणीका आरोहण नहीं बन सकेगा ? यदि सूक्ष्मसांपराय पांच यमरूप है तो एक यमरूप सामायिक संयमको धारण करनेवाले जीवोंके पर्वोक्त दोनों दोष प्राप्त होते हैं ? यदि छेदोपस्थापनाको उभय यमरूप मानते हैं तो एक यम और पंचयमके भेदसे सूक्ष्मसांपरायके दो भेद हो जाते हैं ? १ सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयताः एकस्मिन्नेव सूक्ष्मसाम्परायस्थाने । स. सि. १.८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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