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छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, १, ३४,
बादरवाउ- चादरतेउ - बादरआउ - बादरपुढवि - बादरणिगोदजीव-- बादरवणफदिकाइय पत्तेयसरीर - अपजत्तयस्स जहण्णिया ओगाहणा असंखेजगुणा । बेइंदिय - तेइंदिय- चउरिंदियपंचिदिय - अपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा । सुहुम-णिगोदपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेञ्जगुणा । तस्सेव अपजत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया । तस्सेव पज्जत्तयस्त उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया । सुहुमवाउकाइय- सुहुमते उकाइय-मुहुम आउकाइय- सुहुम पुढविकाइय-पज्जत्तयस्स जहणियागाणा असंखे जगुणा । तस्सेव अपजत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया । तस्सेव पज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया । बादरवाउकाइय बादरते उकाइय-वादरआउकाइय- बादरपुढविकाइय- बादरणिगोदजीव - पज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा । तस्सेव अपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया । तस्सेव पज्जत्तयस्स उकस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया । बादरवणष्कदिकाइयपत्तेय
उत्तरोत्तर असंख्यातगुणी है । सूक्ष्म पृथिवीकायिक लब्ध्यपर्याप्तक जीवकी जघन्य अवगाहनासे बाद वायुकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर जलकायिक, बादर पृथिवीकायिक, बादरनिगोद और प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिकायिक लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंकी जघन्य अवगाहना उत्तरोत्तर असंख्यातगुणी है । सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिकायिक लब्ध्यपर्याप्तक जीवकी जघन्य अवगाहनासे अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंकी जघन्य अवगाहना उत्तरोत्तर असंख्यातगुणी है । लब्ध्यपर्याप्तक पंचेन्द्रिय जीवकी जघन्य अवगाहनासे सूक्ष्म निगोदिया पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । इससे सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना कुछ अधिक है । इससे सूक्ष्म निगोदिया पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना कुछ अधिक है। इससे सूक्ष्म वायुकायिक पयाप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । इससे सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना विशेष अधिक है । इससे सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना विशेष अधिक है। इसीतरह सूक्ष्म वायुकायिकसे सूक्ष्म अग्निकायिक, उससे सूक्ष्म जलकायिक, उससे सूक्ष्म पृथिवीकायिकसंबंन्धी प्रत्येककी क्रमसे पर्याप्त, अपर्याप्त और पर्याप्तसंबन्धी जघन्य, उत्कृष्ट और उत्कृष्ट अवगाहना उत्तरोत्तर असंख्यातगुणी, विशेषाधिक और विशेषाधिक समझ लेना चाहिये । इसीतरह सूक्ष्मपृथिवीकायिक पर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहनासे बादर वायुकायिक, उससे बादर अग्निकायिक, उससे बादर जलकायिक, उससे बादर पृथिवीकायिक, उससे बादर निगोद जीव और उससे निगोदप्रतिष्ठित वनस्पतिकायिकसंबधी प्रत्येककी क्रमले पर्याप्त, अपर्याप्त और पर्याप्तसम्बन्धी जघन्य, उत्कृष्ट और उत्कृष्ट अवगाहना उत्तरोत्तर असंख्यातगुणी, विशेषाधिक और विशेषाधिक समझना चाहिये । सप्रतिष्ठित प्रत्येककी उत्कृष्ट
१ बादरणिगोदपदिदिपज्जत्ता किमिदि सुसम्हि ण वृत्ता ? ण, तेसिं पसेयसरीरेस अंतरभावादी ।
धवला अ. पृ. २५०.
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