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छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, १, ७.
उत्ता | अप्पा बहुग-जोणित्तादो पुव्वमेव भावपरूवणा उच्चदे । सुत्ते तहा परूवणा किमिद दिस्सदे ? ण, सुत्तस्सत्थ-सूयणमेत्त-वावारादो । तहाइरिया किमिदि ण वक्खार्णेति ? ण, अवधारणसमत्थाणं सिस्साणं संपहि अभावादो तहोवएसाभावादो वा । अत्थितं भणदि संताणियोगो । संताणियोगम्हि जमत्थित्तं उत्तं तस्स पमाणं परुवेदि दव्वाणियोगो | तेहिंतो अवगय- संत - पमाणाणं वट्टमाणोगाहणं परूवेदि खेत्ताणियोगो । पुणो तेहिंतोवलद्ध-संत- पमाण -खेताणं अदीद-काल-विसिह - फासं परुवेदि फोसणाणुगमो । तेहिंतो अवगय-संत-प्रमाण- खेत्त - फोसणाणं द्विदिं परुवेदि कालाणियोगो । तेसिं चेव विरहं परूवेदि अंतराणियोगो । तेसिं चेव भावं परूवेदि भावाणियोगो । तेसिं चैव थोव- बहुत्तं चणेदि अप्पा बहुगमिदि । उत्तं च
अस्थित्तं पुण संतं अस्थित्तस्स य तहेव परिमाणं ।
पच्चुप्पण्णं खेत्तं अदीद-पदुप्पण्णणं फुसणं ॥ १०२ ॥
भावप्ररूपणा और अल्पबहुत्वप्ररूपण की योनि होनेसे इन दोनों के पहले ही अन्तरप्ररूपणाका उल्लेख किया है। तथा अल्पबहुत्व की योनि होनेसे इसके पहले ही भावप्ररूपणाका कथन किया है ।
शंका- सूत्रमें प्ररूपणाओंका वर्णन इसप्रकार क्यों नहीं दिखाई देता है ?
समाधान - यह कोई बात नहीं, क्योंकि, सूत्रका कार्य अर्थकी सूचना करना
मात्र है ।
शंका- यदि ऐसा है तो दूसरे आचार्य उक्त प्रकारसे प्ररूपणाओंका व्याख्यान क्यों नहीं करते हैं ?
समाधान - ऐसा भी नहीं कहना चाहिये, क्योंकि, एक तो आजकल विस्तृत व्याख्यानरूप तत्वार्थके अवधारण करनेमें समर्थ शिष्योंका अभाव है, और दूसरे उसप्रकार के उपदेशका अभाव है । इसलिये आचार्यों ने उक्त प्रकार से प्ररूपणाओं का व्याख्यान नहीं किया । • सत्प्ररूपणा पदार्थों के अस्तित्वका कथन करती है। सत्प्ररूपणा में जो पदार्थोंका अस्तित्व कहा गया है उनके प्रमाणका वर्णन द्रव्यानुयोग करता है। इन दोनों अनुयोगों के द्वारा जाने हुए अस्तित्व और संख्या प्रमाणरूप द्रव्योंकी वर्तमान अवगाहनाका निरूपण क्षेत्रानुयोग करता है । उक्त तीनों अनुयोगोंके द्वारा जाने हुए सत्, संख्या और क्षेत्ररूप द्रव्योंके अतीतकालविशिष्ट वर्तमान स्पर्शका स्पर्शनानुयोग वर्णन करता है। पूर्वोक्त चारों अनुयोगों के द्वारा जाने गये सत्, संख्या, क्षेत्र और स्पर्शरूप द्रव्योंकी स्थितिका वर्णन कालानुयोग करता है । जिन पदार्थोंके अस्तित्व, संख्या, क्षेत्र, स्पर्श और स्थितिका ज्ञान हो गया है। उनके अन्तरकालका वर्णन अन्तरानुयोग करता है, उन्हींके भावोंका वर्णन भावानुयोग है और उन्हींके अल्पबहुत्वका वर्णन अल्पबहुत्वानुयोग करता है । कहा भी हैभस्तित्वका प्रतिपादन करनेवाली प्ररूपणाको सत्प्ररूपणा कहते हैं । जिन पदार्थोंके
करता
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