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________________ कालपरूवणा कालपरूवणा ५५. कालं दुविहं-जह० उक्क० च । उक्कस्सए पगदं । दुवि०-ओघे आदे। ओघे० पंचणा०-चदुदंस०-सादा०-चदुसंज-पुरिस-आहारदुग-जस-तित्थ०-उच्चा०पंचंत० उक्कस्सपदेसबंधकालो केव०? जह० एग०, उक्क० संखेंजसम० । अणु० पदे० बं० केव० ? सव्वद्धा । सेसाणं सव्वपगदीणं उक्क० पदे० ० केव० ? जह० एग०, उक० आवलि० असंखें । अणु० सव्वद्धा । तिण्णिआउ० उक्क० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखें । अणु० पदे० बं० ज० ए०, उक्क० पलि० असंखें । एवं ओषभंगो पंचिंदि०-तस०२-पंचमण-पंचवचि०-कायजोगि-ओरालि०-इत्थि०-पुरिस०-णस०कोधादि०४-आभिणि-सुद०-ओधि०-चक्खु०-अचक्खु०-ओधिदं०-भवसि०-सम्मा० . खइग०-उवसम-सण्णि-आहारग त्ति । णवरि विसेसो जाणिय वत्तव्वं । तेसिं ओघभंगो चेव । णवरि इत्थि०-पुरिस० चदुदंस०-चदुसंज०-पुरिस०-आहारदुग-जस०तित्थ० उक्क० जह० एग०, उक्क० संखेंजस० । अणु० सव्वदा । सेसाणं उक्क० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखें । अणु० सव्वदा । एवं णस०-कोधादि०३ । कालप्ररूपणा ५५ काल दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, आहारकद्विक, यश-कीर्ति, तीर्थङ्कर, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले. जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट, काल संख्यात समय है। इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका कितना काल है ? सर्वदा है। शेष सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका काल सर्वदा है। तीन आयुओंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इस प्रकार ओघके समान पञ्चेन्द्रियद्विक, त्रसद्विक, पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिः दर्शनी, भव्य, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, संज्ञी और आहारक जीवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जिस मार्गणामें जो विशेषता हो उसे जानकर कहना चाहिए । यद्यपि उनमें ओघके समान ही भङ्ग है,फिर भी स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंमें चार दर्शनावरण, चार संज्वलन, पुरुषवेद, आहारकद्विक, यश-कीर्ति और तीर्थङ्करप्रकृतिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है, तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका काल सर्वदा है। शेष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका काल सर्वदा है। इसी प्रकार नपुंसकवेदी और क्रोधादि तीन कपायवाले जीवों में जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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