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________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे २५. इत्थिवेदेसु पंचणा-थीणगिद्धि०३-दोवेद-मिच्छ०-अणंताणु०४णवंस०-णीचा०-पंचंत० उक्क० अणु० अट्ठ० सबलो। णिदा-पयला-अपच्चक्खाण०४छण्णोक० उक्क० अढ० । अणु० अढ० सव्वलो० । चदुदंसणा०-चदुसंज० टक्क० खेत्तभंगो । अणु० अट्ठचा सव्वलो० । पच्चक्खाण०४ उक्क० छनों । अणु० अट्ठ० सव्वलो० । इत्थि-दोआउ०-चदुसंठा-पंचसंघ०-आदावुजो० उक्क ० अणु० अट्ठ० । पुरिस-मणुस-ओरालि०अंगो०-असंप०-मणुसाणु० उक्क० खेत्तभंगो । अणु० अट्ठों। दोआउ०-तिण्णिजादि-आहारदुग-तित्थ० खेत्तभंगो। दोगदि-दोआणु० उक्क० अतः यह स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। स्त्रीवेद आदिके उत्कृष्ट प्रदशवन्धवाले जीवोंका बसनालीके कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन अपने-अपने स्वामित्वको जानकर पाँच ज्ञानावरणादिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवालोंके समान ही घटित कर लेना चाहिए। दो गति आदिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका जो क्षेत्र कहा है वही यहाँ पर स्पर्शन प्राप्त है, इसलिए यह स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। यहाँ देवगतिपञ्चकका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध सम्यग्दृष्टि जीव ही करते हैं, इसलिए इनके दोनों पदावाले जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान कहा है, क्योंकि इन जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागसे अधिक स्पर्शन नहीं प्राप्त होता । सुभगादिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव ऊपर बसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन करते हैं, इसलिए यह उक्त प्रमाण कहा है। इसी प्रकार परघात आदि प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशवन्ध करनेवाले जीवोंका स्पशन अपने स्वामित्वके अनुसार सनालोके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण घटित कर लेना चाहिए। २५. स्त्रीवेदवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, स्त्यानगृद्धित्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, नपुंसकवेद, नीचगोत्र और पाँच अन्तगयका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। निद्रा, प्रचला, अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क और छह नोकपायके उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवान त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । चार दर्शनावरण और चार संत्रलनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पशन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट प्रदशबन्ध करनवाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । प्रत्याख्यानावरण चतुष्कका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने बसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोन वसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, दो आयु, चार संस्थान, पाँच संहनन, आतप और उद्योतका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पुरुषवेद, मनुष्यगति, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, असम्प्रापासृपाटिका संहनन, और मनुष्यगत्यानुपूर्वीका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने बसनालोके कुछ कम आठ बंटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । दो आयु, तीन जाति, आहार कद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिके दोनों पदवालोंका स्पर्शन १ ता० प्रतौ 'मिच्छ० मिच्छ (?) अणंतागु० णपुं०' इति पाटः । २ आ प्रती 'अह । इत्थिः' इति पाठः । ३ आ० प्रती 'आदाउजो० उक्क०' इति पाटः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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