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________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे बंधगा जीवा । अजहण्णपदे०७० जीवा असं०गुणा। एवं याव अणाहारग चि असंखेंजरासीणं अणंतरासीणं च सव्वेसिं च णेदव्वं । ३४४. जहण्णुक्कस्सए पगदं। दुवि०-ओघे० आदे० । ओये० पंचणा०णवदंस०-दोवेद०-मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक०-तिरिक्खाउ०-दोगदि - पंचजादि-तिण्णिसरीर-छस्संठाण-ओरा०अंगो . छस्संघ०-वण्ण०४ - दोआणु०-अगु०४-आदाउजो०दोविहा०-तस-थावरादिदसयुग०-दोगोद-पंचंतरा० सव्वत्थोवा उक्क० पदे०६० जीवा । जह पदेस० जीवा अणंतगु० । अजहण्णमणुकस्सपदेस० जीवा असंखेंजगुणा । णिरयमणुस-देवाउ-णिरयगदि-णिरयाणु० सव्वत्थोवा उक्क० पदे०७० जीवा। जह०पदे०७० जीवा असं०गुणा । अजहण्णमणुकस्सपदे०० जीवा असं०गुणा । देवगदि०४ सव्वत्थोवा जह पदे०७० जीवा । उक्क०पदे०७० जीवा असं०गु० । अजह०मणु०पदे०बं० जीवा असं०गुणा। आहारदु० सव्वत्थोवा जह० पदे०६० जीवा। उक्क०पदे०७० जीवा संखेंजगुणा । अज०मणु०पदे०बं० जीवा सं०गुणा। तित्थ० सव्वत्थोवा जह०पदे०७० जीवा । उक्क० पदे०ब जीवा संखेंजगु० । अजह०मणु०पदे०ब जीवा असंखें गुणा । बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अजघन्य प्रदेशोंका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इस प्रकार अनाहारक मार्गणा तक असंख्यात राशिवाली और अनन्त राशिवाली जितनी मार्गणएँ हैं,उन सबमें जानना चाहिए। इस प्रकार जघन्य अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। ३४४. जघन्योत्कृष्ट अल्पबहुत्वका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, तिर्यञ्चायु, दो गत्ति, पाँच जाति, तीन शरीर, छह संस्थान, औदारिकशरीरआङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, वर्णचतुष्क, दो आनुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, सस्थावरादि दस युगल, दो गोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशांके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। नरकायु, मनुष्यायु, देवायु, नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वीक उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। आहारकद्विकके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीब सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य १. ता०प्रतौ 'आ० । पंचणा.' इति पाठः। २. आ०प्रतौ 'पंचणा० तिजिसरीर छसंठाण अंगो.' इति पाठः । ३. ता प्रतौ 'असंखेज्जगुणं (णा)' इति पाठः । ४. ता०प्रतौ 'देवाउणिरयाणु०' इति पाठः । ५. ता प्रतौ 'अजह० अं(अ) णुक० पदे०बं०' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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