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अज्झवसाणसमुदाहारे अप्पाबहुरं णीचुच्चागोदस्स य यथा थीणगिद्धितियस्स भंगो कादव्यो। अपञ्चक्खाणचदुक्कस्स दुवे परिवाडीओ। पञ्चक्खाण०४ तिण्णि परिवाडीओ। कोधसंजलणाए चत्तारि परिवाडीओ। अण्णा च अट्ठ परिवाडीओ'। माणसंजलणाए चत्तारि परिवाडीओ अण्णा च तिभागूणिया परिवाडी। मायसंजलणाए चत्तारि परिवाडीओ अण्णा च चदुभागूणिया परिवाडी। लोभसंजलणाए चत्तारि परिवाडीओ अण्णा च अट्ठमभागूणिया परिवाडी। पुरिसवेदस्स दुवे परिवाडीओ अण्णा च तदिया पंचभागूणिया परिवाडीओ। छण्णोकसायाणं दुवे परिवाडीओ। परिवाडी णाम सण्णा का ? याणि मिच्छादिहिस्स पदेसबंधट्ठाणाणि एसा परिवाडी सण्णा णाम ।
____एवं परिमाणाणुगमो समत्तो।
अप्पाबहुगं ३३६. अप्पाबहुगं दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० पंचणाणावरणीयाणं सव्वत्थोवाणि जोगट्ठाणाणि । पदेसबंधट्ठाणाणि विसेसाधियाणि । सव्वत्थोवाणि णवण्हं दंसणावरणीयाणं जोगट्ठाणाणि। थीणगिद्धितियस्स पदेसबंधट्ठाणाणि विसेसा० । णिदा-पयलाणं पदेसबंधट्ठाणाणि विसेसा० । चदुण्हं दंसणावर० पदेसबंधट्ठाणाणि विसेसाधि० । सव्वत्थोवाणि सादासादाणं दोहं पगदीणं जोगट्ठाणाणि । असादस्स त्रिकके समान भङ्ग कहना चाहिए | अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके विषयमें दो परिपारियाँ हैं। प्रत्याख्यानावरणचतुष्कके विषयमें तीन परिपाटियाँ हैं। क्रोधसंज्वलनके विषयमें चार परिपाटियाँ हैं और आठ अन्य परिपाटियाँ हैं। मान संज्वलनकी चार परिपाटियाँ हैं और त्रिभाग कम एक अन्य परिपाटी है । मायासंज्वलनकी चार परिपाटियाँ हैं और चतुर्थ भाग कम एक अन्य परिपाटी है। लोभसंज्वलनकी चार परिपाटियाँ हैं और अष्टम भाग कम एक अन्य परिपाटी है। पुरुषवेदकी दो परिपाटियाँ हैं और तृतीय भाग कम एक तीसरी परिपाटी है तथा छह नोकषायोंकी दो परिपाटियाँ हैं।
शंका-परिपाटी इस संज्ञाका क्या अर्थ है ? समाधान-मिथ्यादृष्टिके जो प्रदेशबन्धस्थान होते हैं उतनेकी परिपाटी संज्ञा है।
अल्पबहुत्व ३३६. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरणके योगस्थान सबसे स्तोक हैं। उनसे प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं । नौ दर्शनावरणोंके योगस्थान सबसे स्तोक हैं । उनसे स्त्यानगृद्धित्रिकके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। उनसे निद्रा और प्रचलाके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। उनसे चार दर्शनावरणके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं । सातावेदनीय और असातावेदनीय इन दोनों प्रकृतियोंके योगस्थान सबसे
१. ता०प्रतौ 'अण्णा व (च) अपरिवाडीए' इति पाठः। २. ता०प्रतौ ‘तिभागू (ऊ) णिया' इति पाठः। ३. ता०प्रतौ 'सण्णा कायाणि' इति पाठः । ४. ता०प्रतौ एवं परिमाणाणुगमो समत्तो' इति पाठो नास्ति । ५. ता०प्रतौ 'सम्वत्थोवाणं (णि) णवण्हं' इति पाठः।
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