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________________ ११ फोसणपरूवणा दोआउ० खेत्तभंगो । तिरिक्खाउ०-मणुस०-चदुजादि-चदुसंठा०-ओरालि०अंगो०छस्संघ०-मणुसाणु०-आदा० [ तस-] बादर० उक्क० खेत्तभंगो। अणु० सव्वलो० । दोगादि-दोआणु० उक्क० अणु० छच्चौदस० । वेउव्वि०-वेउव्वि०अंगो० उक० अणु० बारह । उज्जो०-जस० उक्क० सत्तचाँद्दस । अणु० सव्वलो० । ११. पंचिंदि तिरिक्ख०३ पंचणा०-थीणगिद्धि०३-दोवेद-मिच्छ०-अणंताणु०४ उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम डेढ़ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयुओंका भङ्ग क्षेत्रके समान है। तिर्यश्चायु, मनुष्यगति, चार जाति, चार संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप, त्रस और बादरका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो गति और दो आनुपूर्वीका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्गका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने बसनालीके कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उद्योत और यश-कीर्तिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम सात बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-एकेन्द्रियादि सबके यथासम्भव बँधनेवाली प्रकृतियोंका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धकी अपेक्षा स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण कहा है, इसलिए इस स्पर्शनका यहाँ व आगे हम अलग-अलग स्पष्टीकरण नहीं करेंगे । जहाँ विशेषता होगी उसका खुलासा अवश्य करेंगे। पाँच ज्ञानावरणादि का उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके स्वस्थानके समान मारणान्तिक समुद्रातके समय भी सम्भव है, इसलिए इस अपेक्षासे इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका लोकके असंख्यातवें भाग और. सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है। देवोंमें मारणान्तिक समुद्धात करते समय छह दर्शनावरण आदिका तथा नारकियोंमें मारणान्तिक समुद्धात करते समय अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध सम्भव है, इसलिए इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका सनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है । देवियोंमें मारणान्तिक समुद्रात करनेवाले तिर्यञ्चोंके स्त्रीवेदका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध सम्भव होनेसे इसका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका बसनालोके कुछ कम डेढ़ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। नरकायु और देवायुका प्रदेशबन्ध मारणान्तिक समुद्धातके समय नहीं होता, इसलिए इनके दोनों पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होनेसे वह क्षेत्रके समान कहा है । तिर्यञ्चायुका प्रदेशबन्ध तो मारणान्तिक समुद्भातके समय होता ही नहीं । शेषका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध मारणान्तिक समुद्रातके समय भी होता है, फिर भी यह स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागसे अधिक नहीं होता, इसलिए इसका भंग क्षेत्रके समान कहा है। दो गति और दो आनुपूर्वोकी अपेक्षा स्पर्शन तथा वैक्रियिकद्विककी अपेक्षा स्पर्शन जिस प्रकार ओघ प्ररूपणाके समय घटित करके बतलाया है, उसी प्रकार यहाँपर भी घटित कर लेना चाहिए । जो ऊपर एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं उनके भी उद्योत और यश कीर्तिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध होता है, इसलिए इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका सनालीके कुछ कम सात वटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। ११. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें पाँच ज्ञानावरण, स्त्यानगृद्धित्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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