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महाबंधे पदेसबंधाहियारे फोसणं
३१८. फोसणाणुगमेण दुवि० - ओघेण आदेसेण य । ओघेण पंचणा०-तेजा०क०-वण्ण०४-अगु०-उप॰णिमि० - पंचत० चत्तारिखड्डि- हाणि - अवट्ठिदबंधगेहि केवडि खतं फोसिदं ? सव्वलोगो । अवत्त० लोगस्स असंखें । श्रीणगि ०३ - मिच्छ० - अनंताणु ०४ णाणा० भंगो। णवरि अवत्त० अट्ठचों० । मिच्छ० अवत्त० अट्ठ-बारह० । छर्दस अट्ठक०भय-दु० णाणा० भंगो | णवरि अनंतभागवड्डि- हाणि० अट्ठचों० । सादासाद ०सत्तणोक०-तिरिक्खाउ-दोगदि - पंचजादि छस्संठाण ओरालि ०अंगो० - छस्संघ० - दोआणु ०पर०-उस्सा०-आदाउज्जो० दोविहा० तसादिदसयुग० - दोगोद' ० सव्वपदा केवडि खत फोसिदं ? सव्वलोगों । णवरि पुरिस० - हस्स- रदि-अरदि-सोग० अनंतभागवड्डि- हाणि० अट्ठचों० । अपच्चक्खाण०४ णाणा० भंगो | णवरि अनंतभागवड्डि-हाणि० केवडि खेत्तं फोसिदं ? अचों | अवत्त० केव खेतं फोसिदं ? छच्चों६० | दोआउ० - आहारदुगं
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स्पर्शन
३१८. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश | ओघसे पाँच ज्ञानावरण, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धिन्त्रिक, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मिथ्यात्व अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। छह दर्शनावरण, आठ कषाय, भय और जुगुप्साका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । इतनी विशेषता है कि इनकी अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानिके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, सात नोकषाय, तिर्यवायु, दो गति, पाँच जाति, छह संस्थान, औदारिक शरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्रास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस आदि दस युगल और दो गोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानिके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इतनी विशेषता है कि इनकी अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानिके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन
१. ता०प्रतौ 'तसादिदस [ युगल० ] दोगोदं' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'केवडि खेत्ते फोसिदं १ सव्वलोगे' आ० प्रती केवडि खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगे' इति पाठः ।
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