________________
फोसणपरूवणा है. णिरएसु छदंस०-बारसक०-सत्तणोक० उक्क० खेतभं० । अणु० छच्चोंदस० । प्रदेशबन्ध चारों गतिके पर्याप्तक सम्यग्दृष्टि जीव करते हैं । अप्रत्याख्यानावरण चारका चारों गतिके असंयतसम्यग्दृष्टि पर्याप्त जीव उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करते हैं । तिर्यञ्चायुका चारों गतिके संज्ञो पर्याप्तक मिथ्यादृष्टि जीव उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करते हैं। तथा आतपका तीन गतिके संज्ञो पर्याप्तक मिथ्यादृष्टि जीव उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करते हैं । यतः इन जीवोंके इन प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध स्वस्थानस्वस्थानके समय और विहारवत्स्वस्थानके समय भी सम्भव है, अतः इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है । प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका दो गतिके संयतासंयत जीव, समचतुरस्त्रसंस्थान, प्रशस्तविहायोगति, और सुभग आदि तीनका दो गतिके संज्ञी पर्याप्तक मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि जीव तथा अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरका दो गतिके संज्ञी पर्याप्तक मिथ्यादृष्टि जीव उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करते हैं। यतः इन जीवोंके स्वस्थानस्वस्थानके समय और मारणान्तिक समुद्वातके समय उत्कृष्ट प्रदशबन्ध हो सकता है, अतः इन प्रकृतियाका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि अप्रशस्तविहायोगति और दुःस्वरका नीचे मारणान्तिक समुद्धात कराते समय तथा शेष प्रकृतियोंका ऊपर मारणान्तिक समुद्घात कराते समय उत्कृष्ट प्रदेशवन्ध कहना चाहिए। तथा मूलमें स्वस्थानस्वस्थानकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शन नहीं कहा है, फिर भी वह सम्भव है, इसलिए विशेषार्थमें हमने उसका निर्देश कर दिया है। नरकाय, देवाय और आहारकद्विकके दोनों पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है, यह स्पष्ट ही है। मनुष्यायुका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध देवोंके विहारवत्स्वस्थानके समय भी सम्भव है, इसलिए इसका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। नरकगतिद्विक और देवगतिद्विकका दोनों प्रकारका प्रदेशबन्ध क्रमसे नारकियोंमें और देवोंमें मारणान्तिक समुद्धातके समय भी सम्भव है, इसलिए इनका दोनों प्रकारका प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका सनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्धात करते समय भी तिर्यञ्चगति आदिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध सम्भव है। स्वस्थानमें तो यह सम्भव है ही, इसलिए इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है । देव विहारवत्स्वस्थानके समय और एकेन्द्रियोंमें ऊपर मारणान्तिक समुद्धात करते समय भी उद्योतका उत्कृष्ट प्रदेशवन्ध करते हैं, इसलिए इसका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंकासनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शनकहा है। देवोंके विहारवत्स्वस्थानके समय तथा नारकियों और देवोंके तिर्यञ्चों और मनुष्योंमें मारणान्तिक समुद्भातके समय भी स्त्रीवेद आदिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध सम्भव है, इसलिए इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है । नारकियों और देवोंमें मारणान्तिक समुद्भात करते समय भी वैक्रियिकद्विकका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध सम्भव है, इसलिए इनके दोनों पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका वसनालीके कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। तीर्थङ्कर प्रकृतिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध मनुष्य करते हैं, इसलिए इसका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण होनेसे इसे क्षेत्रके समान कहा है। तथा देवोंके विहारवत्स्वस्थानके समय भी इसका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध होता है, इसलिए इस अपेक्षासे इसका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण कहा है।
६. नारकियों में छह दर्शनावरण, बारह कषाय और सात नोकषायोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने Jain Education Internationa
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org