SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 270 महाबंधे पदेसबंधाहियारे एवं आहारदुगं / णवरि संखेंजं कादव्वं / तित्थय० णाणा भंगो। णवरि अवत्त० साद०भंगो। एवं ओघभंगो तिरिक्खोघं कायजोगि-ओरालियका०-ओरालियमि०-णवूस०कोधादि०४-मदि-सुद०-असंजद - अचक्खु०-तिण्णिले०-भवसि०-अभव सि०-मिच्छादि०असण्णि-आहारग त्ति / णवरि ओरालियमि० देवगदिपंचगस्स ऍकवड्डि..। कम्मइ०अणाहारग० एसिं अवत्त० अत्थि तेसिं असंखेंजगुणवड्डि० असंखेंजा भागा। अवत्त० असंखेजदिभागो। सेसाणं णिरयादीणं एसिं असंखेंज्जजीवा तेसिं ओघं सादभंगो / एसिं संखेंजजीविगा तेसिं ओघं आहारसरीरभंगों'। एवं णेदव्वं / एवं भागाभागं समत्त। जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं / इसी प्रकार आहारकद्विकके सब पदोंके बन्धक जीवोंका भागाभाग करना चाहिए। इतनी विशेषता है कि संख्यात करना चाहिए / तीर्थङ्कर प्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीवोंका भागाभाग ज्ञानावरणके समान है। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका भागाभाग सातावेदनीयके समान है। इस प्रकार ओघके समान सामान्य तिर्यश्च, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, नपुंसकवेदवाले, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और आहारक जीवों में जानना चाहिए / इतनी विशेषता है कि औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें देवगतिपञ्चककी एक वृद्धि है। कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें जिनका अवक्तव्यपद है, उनकी असंख्यातगुणवृद्धिके बन्धक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। शेष नरकादि मार्गणाओंमें जिनका परिमाण असंख्यात है,उनका ओघसे सातावेदनीयके समान भङ्ग है और जिन मार्गणाओंका परिमाण संख्यात है, उनमें ओघसे आहारकशरीरके समान भङ्ग है / इस प्रकार ले जाना चाहिए। विशेषार्थ-जो कुल जीवराशि है, उसमें सब प्रकृतियोंके सम्भव सब पदोंके बन्धकोंका यदि बटवारा किया जाय तो कितना हिस्सा किसे मिलेगा, इसका विचार भागाभागमें किया गया है / तदनुसार पाँच ज्ञानावरणादिकी असंख्यातगुणवृद्धिके बन्धक जीव आधेसे कुछ अधिक प्राप्त होते हैं। असंख्यातगुणहानिके बन्धक जीव आधेसे कुछ कम प्राप्त होते हैं। फिर भी इन दोनों पदोंके बन्धक जीवोंका कुल परिमाण मिलाकर सम्पूर्ण जीव राशि नहीं होता है। जो परिमाण बच रहता है उसमें शेष पदाके बन्धक जीव होते है। भागाभागका दृष्टिसे उनका विचार करनेपर तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव सब जीव राशिके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं / अर्थात् सब जीवराशिमें असंख्यातका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतने इन पदोंके बन्धक जीव होते हैं और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव अनन्तवें भागप्रमाण होते हैं / अर्थात् सब जीवराशिमें अनन्तका भाग देनेपर जो लब्ध आवे, उतने इस पदके बन्धक जीव होते हैं / कारणका विचार पहले कर आये हैं / यहाँ इतना विशेष समझ लेना चाहिए कि आगे परिमाण अनुयोगद्वारमें जो प्रत्येक प्रकृतिके विवक्षित पदके बन्धक जीवोंका परिमाण बतलाया है, उसे प्रतिभाग बनाकर यहाँ सर्वत्र भागहार प्राप्त करना चाहिए / पाँच ज्ञानावरणादिमें पाँच नोकषायोंको छोड़कर शेष ऐसी प्रकृतियों भी सम्मिलित हैं, जिनकी 1. ता. प्रतौ 'असंखेज्जजीविगा तेसिं ओघं / आहारसरीरभंगो' इति पाठः / 2. ता०प्रतौ ‘एवं भागाभागं समत्तं / ' इति पाठो नास्ति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy