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________________ फोसणपरूवणा फोसणपरूवणा ८. फोसणाणुगमेण दुविहं-जहण्णयं उक्कस्सयं च । उक्कस्सए पगदं । दुवि०ओघे० आदे। ओघे० पंचणा०-चदुदंसणा०-सादा०-चदुसंज०-पुरिस०-मणुसग०चदुजादि-ओरालि अंगो०-असंपत्त०-मणुसाणु०-तस-बादर-जस०-उच्चा०-पंचंत० उक्क० पदे०बंधगेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो। अणु० सव्वलोगो । थीणगिद्धि०३-असादा०-मिच्छ०-अणंताणु०४-णस०-पर०-उस्सा०-पज्ज०-थिर-सुभणीचा० उक्क० लोगस्स असंखें. अट्ठचौदस० सव्वलोगो वा । अणु० सव्वलोगो। णिद्दा-पयला-अपच्क्खाण०४-छण्णोक०-तिरिक्खाउ०-आदाव० उक० लोगस्स असंखें अट्ठचोदस० । अणु० सव्वलो० । पच्चक्खाण०४-समचदु०-दोविहा०-सुभग-दोसर-आदें. उक्क० छ० । अणु० सव्वलो० । दोआउ०-आहार०२ उक० अणु० खेत्तभंगो। मणुसाउ० उक्क० अट्ठचों । अणु० सव्वलो० । दोगदि०-दोआणु० उक्क० अणु० सहितके होता है, किन्तु ऐसे जीव असंख्यात होते हुए भी बहुत कम होते हैं जो लोकके असंख्यातवें भागमें ही पाये जाते हैं,अतः लोकका संख्यातवाँ भाग नहीं कहा। पृथिवीकायिक आदि चारों स्थावरोंका भङ्ग एकेन्द्रियोंके समान कहा । तथा बादर सामान्य व बादर अपर्याप्तमें जो विशेषता थी,वह अलगसे खोल दी गयी है। इस प्रकार क्षेत्र समाप्त हुआ। स्पर्शनानुगम ८. स्पर्शनानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण,चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, मनुष्यगति, चार जाति, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, असम्प्राप्तामृपाटिकासंहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, त्रस, बादर यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोकका स्पर्शन किया है । स्त्यानगृद्धित्रिक, असातावेदनीय, मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धीचतुष्क, नपुंसकवेद, परघात, उच्छ्रास, पर्याप्त, स्थिर, शुभ और नीचगोत्रका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण, त्रसनालोके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण और सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । निद्रा, प्रचला, अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क, छह नोकषाय, तिर्यञ्चायु और आतपका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। प्रत्याख्यानावरण चतुष्क, समचतुरस्रसंस्थान, दो विहायोगति, सुभग, दो स्वर और आदेयका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु और आहारकद्विक का उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। मनुष्यायुका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रामाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो गति और दो आनुपूर्वीका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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