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________________ २५२ महाबंधे पदेसबंधाहियारे थावर-दूभग-दुस्सर-अणादें-णीचा० इस्थिभंगो। पुरिस० णिहाए भंगो। णवरि अवत्त० जह० अंतो०, उक्क. पणवण्णं पलिदो० देसू० । एवं हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं । णवरि अवत्त० साद०भंगो। णिरयाउ० चत्तारिवाड्डि-हाणि-अवढि०-अवत्त० पगदिअंतरं कादव्वं । [ दो] आउ० चत्तारिवड्डि-हाणि-अवढि० जह० एग०, अवत्त० जह. अंतो०, उक्क० कायट्टिदी० । देवाउ० असंखेंजगुणवड्डि-हाणी० जह० एग०, अवत्त जह. अंतो०, उक्क० अट्ठावण्णं पलिदो० पुवकोडिपुधत्तं । तिण्णिव ड्वि-हाणि-अवट्टि० जह० एग०, उक्क० कायट्टिदी० । दोगदि-तिण्णिजोदि-वेउवि०-वेउवि अंगो०-दोआणु०सुहुम०-अपजत्त-साधारणं असंखेंञ्जगुणवड्डि-हाणी० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क. पणवणं पलिदो. सादि। तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० जह० एग०, उक्क० सगहिदी० । मणुसगदि०४ असंखेंजगुणवड्डि-हाणी. जह० एग०, उक्क० तिणिपलि. देसू । तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० जह० एग०, उक्क० कायट्टिदी० । अवत्त० जह० अंतो०, उक० पणवणं पलिदो० देसू० । एवं ओरालि०। णवरि अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पणवण्णं पलिदो० सादि० । पंचिंदि०-समचदु०-पसत्थ०-तस-सुभग-सुस्सर अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्रका भङ्ग स्त्रीवेदके समान है। पुरुषवेदका भङ्ग निद्राके समान है । इतनी विशेषता है कि इसके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचपन पल्य है। इसी प्रकार हास्य, रति, अरति और शोकका भङ्ग जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्यपदका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । नरकायुकी चार वृद्धि, चार हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदका प्रकृतिबन्धके समान अन्तरकाल करना चाहिए । दो आयुकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। देवायुकी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक अट्ठावन पल्य है। तथा इसकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। दो गति, तीन जाति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, दो आनुपूर्वी, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणकी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक पचपन पल्य है। तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अपनी स्थितिप्रमाण है। मनुष्यगतिचतुष्ककी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है । तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचपन पल्य है। इसी प्रकार औदारिकशरीरका भङ्ग जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक पचपन पल्य है । पञ्चेन्द्रियजाति, समचतुरस्रसंस्थान,प्रशस्त विहायोगति,त्रस, १. ता०प्रतौ 'ए० सगष्टिदी' इति पाठः ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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