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________________ वडिबंधे अंतरं २५१ २६२. इत्थिवेदगेसु पंचणा० असंखेंजगुणवडि-हाणी० जह० एग०, उक्क० अंतो०। तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० जह० एग०, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं। एवं पंचंत० । थीणगि०३-मिच्छ०-अणंताणु०-४ असंखेज[ गुण ]वडि-हाणि०' जह० एग०, उक्क० पणवणं पलिदो० देसू० । तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० कायट्ठिदी० । णिहा-पयला-भय-दुगुं० णाणाभंगो। णवरि अणंतभागवड्डि-हाणी० जह० अंतो०, उक्क० कायद्विदी० । अवत्त० णत्थि अंतरं । चदुदंस०चदुसंज० एवं चेव । णवरि अवत्त० णत्थि । दोवेदणी०-थिराथिर-सुभासुभ-जस०-अजस० गाणा भंगो। णवरि अवत्त० जह० उक्क० अंतो० । अट्ठकसा० असंखेंजगुणवड्डिहाणी जह० एग०, उक्क० पुव्वकोडि० देसूणं । सेसाणं थीणगिद्धिभंगो । णवरि अणंतभागवड्वि-हाणी. जह० अंतो०, उक्क० कायद्विदी० । इथि०-णवूस. असंखेंजगुणवड्डिहाणि. जह० एग०, उक. पणवण्णं पलिदो० देसू० । तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० जह० एग०, उक्क० कायट्ठिदी० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पणवण्णं पलिदो० देसू० । तिरिक्ख०-एइंदि०-पंचसंठा-पंचसंघ०-तिरिक्खाणु०-आदाउजो०-अप्पसत्थ० २६२. स्त्रीवेदवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणकी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सौ पल्यपृथक्त्वप्रमाण है। इसी प्रकार पाँच अन्तरायके विषयमें जानना चाहिए। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचपन पल्य है। तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थिति प्रमाण है। निद्रा, प्रचला, भय और जुगुप्साका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इतनी विशेषता है कि इनकी अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थिति प्रमाण है । अवक्तव्यपदका अन्तरकाल नहीं है। चार दर्शनावरण और चार संज्वलनका भङ्ग इसी प्रकार है । इतनी विशेषता है कि इनका अवक्तव्यपद नहीं है। दो वेदनीय, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यश कीर्ति और अयशःकीर्तिका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्यपदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । आठ कषायोंकी असंख्यात गुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। शेष पदोंका भङ्ग स्त्यानगृद्धिके समान है इतनी विशेषता है कि इनकी अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानिका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचपन पल्य है। तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचपन पल्य है। तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, १. आ०प्रतो, असंखेज वट्टि हाणि' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'अट्टकस ( सा० ) असंखेजगुणवडि हाणि०' आ०प्रतौ 'अकसा० संखेजगुणवडि-हाणि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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