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________________ २३५ वडिबंधे कालो णत्थि । एदेण कमेण सामित्त णेदव्वं । ___ एवं सामित्तं समत्तं । कालो २७८. कालाणुगमेण-दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० सव्वपगदीणं असंखेंजगुणवडि-हाणिवं० केवचिरं कालादो होदि ? जह० एग०, उक्क० अंतोमुहुत्तं । असंखेंजभागवड्डि-हाणि-संखेंजभागवड्डि-हाणि-संखेंजगुणवड्डि-हाणिबंधकालं केवचिरं कालादो होदि ? जह ० एग०, उक्क० आवलि० असंखें । अव४ि०बंध० जह० एग०, उक्क० पवाइजंतेण उवदेसेण ऍकारससमयं । अण्णेण पुण उवदेसेण पण्णारससमयं । एसिं कम्माणं अणंतभागवड्वि-हाणी अत्थि तेसिं सव्वेसिं च अवत्त० सव्वत्थ कालो एयसमयं । दोण्णं आउगाणं चत्तारिवाड्वि-हाणि-अवत्त० णाणाभंगो। अवद्विदबंध० केवचिरं कालादो० ? जह० एग०, उक० सत्तसमयं । एवं याव अणाहारग ति णेदव्वं । णवरि ओरालियमिस्स० देवगदिपंचग० असंखेजगुणवड्डी केवचिरं कालादो० १ जह० उक० अंतोमु०। वेउव्वियमि० सव्वपगदीणं. असंखेंजगुणवतिबंधकालो केवचिरं० १ जह. अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानि नहीं है। इस प्रकार इस क्रमसे स्वामित्व ले जाना चाहिए। इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ। काल २७८. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंकी असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातभागबृद्धि, असंख्यातभागहानि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल प्रवर्तमान उपदेशके अनुसार ग्यारह समय है और अन्य उपदेशके अनुसार पन्द्रह समय है। जिन कर्मोकी अनन्तभागवद्धि और अनन्तभागहानि है उनके उन दोनों पदोंका तथा सब प्रकृतियोंके अवक्तव्यपदका सर्वत्र एक समय काल है । दो आयुओंकी चार वृद्धि, चार हानि और अवक्तव्यपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अवस्थितबन्धका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात समय है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए । इतनी विशेषता है कि औदारिकमिश्रकाययोगी जीवामें देवगतिपञ्चककी असंख्यातगुणवृद्धिका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवों में सब प्रकृतियोंकी असंख्यातगुणवृद्धि बन्धका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल १. ताप्रती ‘एवं सामित्त समत्त' इति पाठो नारित । २. ता०प्रतौ 'एगमम [यं दोण्णं ] आउगाणं' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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