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________________ २३२ वडिबंधे सामित्तं करणस्स वा णिहा-पयलाणं पढमसमयबंधगस्स पढमसमयमिच्छादिहिस्स [ सासण. ] वा । सेसाणं पदाणं णाणा मंगो। दोवेदणी० सव्वाओ णामपगदीओ दोगोद० चतारिवड्डि-हाणि-अवढि० कस्स० १ अण्णद० । अवत्तव्वं कस्स० १ अण्णद० परियत्तमाणगस्स पढमसमयबंधगस्स । अपचक्खाण०४ अणंतभागवड्डी कस्स ? अण्ण० पढमसमय० असंजदस्स । अणंतभागहाणी कस्स० १ अण्णद० सम्मत्तादो परिपडमाणपढमसमयमिच्छादि० वा सासणसम्मादिहिस्स वा। सेसाणं पदाणं णोणा०मंगो। पञ्चक्खाण०४ अणंतभागवड्डी कस्स० १ अण्ण० पढमसमयअसंजदस्स वा संजदासंजदस्स वा। हाणी कस्स० १ अण्ण. संजमादो वा संजमासंजमादो वा परिपउमाणगस्स पढमसमयमिच्छादिहिस्स वा असंजदसम्मादिहिस्स वा। सेसाणं पदाणं णाणावरणभंगों' । णवरि अट्ठक० अवत्तव्वं भुजगारभंगो। चदुसंजलणाणं' अणंतभागवड्डी कस्स० १ अण्ण. पढमसमयअसंजदसम्मा० वा संजदासंजदस्स वा संजदस्स वा। हाणी कस्स० ? अण्ण. संजमादो वा संजमासंजमादो वा सम्मत्तादो वा परिपरमाणगस्स पढमसमयमिच्छादिहिस्स वा सासण० वा सम्मामि० वो असंजदस्स वा संजदासंजदस्स वा। सेसाणं पदाणं णाणाभंगो। चदुण्णं आउगाणं चत्तारिवाड्डि-हाणि-अवढि० कस्स० ? भागहानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर लौटते हुए निद्रा और प्रचलका बन्ध करनेवाला,ऐसा प्रथम समयवर्ती अपूर्वकरण जीव और प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि या सासादनसम्यग्दृष्टि जीव उनकी अनन्तभागहानिका स्वामी है । शेष पदोंका भङ्ग झानावरणके समान है। दो वेदनीय, नामकर्मकी सब प्रकृतियाँ और दो गोत्रकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थितपदका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। उनके अवक्तव्यपदका स्वामी कौन है ? अन्यतर परावर्तमान प्रथम समयमें बन्ध करनेवाला जीव स्वामी है। अप्रत्याख्यानावरणपतुष्ककी अनन्तभागवृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर प्रथम समयवर्ती असंयतसम्यग्दृष्टि जीव स्वामी है। उनकी अनन्तभागहानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर सम्यक्त्वसे गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि या सासादनसम्यग्दृष्टि जीव स्वामी है। शेष पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। प्रत्याख्यानावरण चतुष्ककी अनन्तभागवृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर प्रथम समयवर्ती असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीव स्वामी है। उनकी अनन्तभागहानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर संयमसे और संयमासंयमसे गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि और असंयत्तसम्यग्दृष्टि जीव स्वामी है। शेष पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । इतनी विशेषता है कि आठ कषायोंके अवक्तव्यपदका भङ्ग भुजगारके समान है। चार संज्वलनोंकी अनन्तभागवृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर प्रथम समयवर्ती असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत और संयत जीव स्वामी है। उनकी अनन्तभागहानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर संयम, संयमासंयम और सम्यक्त्वसे गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्याष्टि, असंयतसम्यम्दृष्टि और संयतासंयत्त जीव स्वामी है। शेष पदोंका भाशानावरणके समान है। चार आयुओंकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थितपदका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है । अवक्तव्यपदका स्वामी कौन १. ता प्रतौ ‘णदा [ गं ] गाणावरण-भंगो' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'चदुसंबलणाणा (ण)' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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