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________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे सामित्तं २७१. सामित्ताणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघे० आदे। ओघे० पंचणा०तेजा०-क०-वण्ण०४-अगु०-उप० - णिमि० - पंचंत. चत्तारिवड्डि - हाणि-अवट्ठिदबंधगो कस्स० ? अण्णदरस्स । अवत्तव्वबंध. कस्स० ? अण्णद० उवसमग० परिसडमाण० मणुसस्स वा मणुसिणीए वा पढमसमयदेवस्स वा । थीणगि०३-मिच्छ०-अणंताणु०४ चत्तारिवड्डि-हाणि-अवविदबं० कस्स ? अण्ण । अवत्त० कस्स० ? अण्ण. संजमादो वा संजमासंजमादो वा सम्मत्तादो वा सम्मामिच्छत्तादो वा परिपउमाणगस्स पढमसमयमिच्छादिहिस्स वा सासणसम्मादिहिस्स वा। णवरि मिच्छा० अवत्त० सासणसम्मत्तादो वा ति भणिदबं । णिहा-पयला-भय-दुगं०चत्तारिवड्डि-हाणि-अवट्टि. कस्स० ? अण्ण० । अवत्तव्व० णाणा भंगो। अणंतभागवड्डी कस्स० १ अण्ण० पढमसमयसम्मादिढि० संजदासंजद० संजदस्स वा । अणंतभागहाणी कस्स० ? अण्णद० सम्मत्तादो परिपरमाणगस्स पढमसमयमिच्छा० [ सासण. ] | चदुदंस० णाणाभंगो । णवरि अणंतभागवड्डी' कस्स ? अण्णद० पढमसमयअसंजदसम्मा० संजदासंजदस्स वा संजदस्स वा पढमसमए वट्टमाणगस्स । अणंतभागहाणी कस्स० १ अण्णद० अपुव्व स्वामित्व २७१. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? उपशमश्रोणिसे गिरनेवाला अन्यतर मनुष्य और मनुष्यिनी तथा प्रथम समयवर्ती देव उनके अवक्तव्यबन्धके स्वामी है। त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। उनके अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? संयम, संयमासंयम, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वसे गिरकर जो प्रथम समयमें मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि हुआ है,वह उक्त प्रकृतियोंके अवक्तव्यबन्धका स्वामी है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्यबन्धका सासादनसम्यक्त्वसे च्युत होकर जो प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि हुआ है, वह जीव भी स्वामी हैऐसा कहना चाहिए। निद्रा,प्रचला,भय और जुगुप्साकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थितपदका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। अवक्तव्यपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। उनकी अनन्तभागवृद्धिका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती सम्यग्दृष्टि, संयतासंयत और संयत जीव उनकी अनन्तभागवृद्धिका स्वामी है। उनकी अनन्तभागहानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो सम्यक्त्वसे च्युत होकर प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि या सासादनसम्यग्दृष्टि जीव है, वह उनकी अनन्तभागहानिका स्वामी है। चार दर्शनावरणका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इतनी विशेषता है कि उनकी अनन्तभागवृद्धिका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवर्ती अन्यतर असंयत सम्यग्दृष्टि, संयतासयत और संयत जीव उनकी अनन्तभागवृद्धिका स्वामी है। उनकी अनन्त १. ता०प्रतौ 'अणु (ण्ण)' इति पाठः। २. आ०प्रतौ 'णवरि अवत्त० अणंतभागवडी' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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