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________________ २२४ महाबंधे पदेसबंधाहियारे यत्तो वा तत्तो वा हेट्ठिमाणंतरजोगट्ठाणादो उवरिमाणंतरजोगट्ठाणं गदो तस्स जह० बड्डी । जह० हाणी कस्स० ? यो वा सो वा परंपरपजत्तगो वा परंपरअपजत्तगो वा यत्तो वा तत्तो वा उवरिमाणंतरादो जो टोणादो हेहिमाणंतरजोगट्ठाणं गदो तस्स जह. हाणी । एकदरत्थमवट्ठाणं । एवं ओघभंगो सव्यतिरिक्ख-सव्वमणुस-सव्वएइंदिय-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदियपजतापञ्जत्त--पंचकाय-सव्यतसकाय-कायजोगि०-इत्थि-पुरिस०णस०-कोधादि०४-मदि-सुद०-आभिणि-सुद-ओधि०-असंजद०-चक्खुदं०-अचक्खुदं० ओधिदं०-तिण्णिले०-भवसि०-अभवसि०-सम्मादि०-खइग०-वेदग०-मिच्छा०-सण्णिअसण्णि-आहारग ति। __२५८. रइएसु सव्वपगदीणं ओघं णिरयगदिभंगो। एवं सव्वणिरय-सव्वदेव पंचमण-पंचवचि०-ओरालिय०-वेउव्वियका०-आहारका ०-अवगद०-विभंग०-मणपज०संजद-सामाइ०-छेदो०-परिहार०-सुहुमसंप०--संजदासंज०-उवसम०-सासण-सम्मामि० । ओरालियमि० देवगदिपंचगस्स जह० वड्डी क० ? अण्णदरस्स दुसमयओरालियकायजोगिस्स । सेसाणं ओघो। वेउव्वियमिस्स० सव्वपगदीणं जह० वड्डी क. ? अण्णदरस्स दुसमयवेउव्वियका मिस्सगस्स । एवं आहारमि० । कम्मइग-अणाहारगेसु सव्वजहाँ-कहींसे अधस्तन अनन्तर योगस्थानसे उपरितन अनन्तर योगस्थानको प्राप्त हुआ, वह उनकी जघन्य वृद्धिका स्वामी है। उनकी जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो कोई परम्परा पर्याप्तक जीव या परम्परा अपर्याप्तक जीव जहाँ-कहींसे उपरिम अनन्तर योगस्थानसे अधस्तन अनन्तर योगस्थानको प्राप्त हुआ,वह उनकी जघन्य हानिका स्वामी है। तथा इनमेंसे किसी एक स्थानमें जघन्य अवस्थान होता है। इस प्रकार ओघके समान सब तिर्यश्च, सब मनुष्य, सब एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय व पर्याप्त और अपर्याप्त, पाँच स्थावरकायिक, सब त्रसकायिक, काययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी,' अवधिज्ञानी, असंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, संज्ञी, असंज्ञी और आहारक जीवोंमें जानना चाहिए। २५८. नारकियोंमें सब प्रकृतियोंका भङ्ग ओघसे नरकगतिके समान है। इसी प्रकार सब नारकी, सब देव, पाँच मनेयोगी, पाँच वचनयोगी, औदारिककाययोगी, वैक्रियिककाययोगी, आहारककाययोगी, अपगतवेदी, विभङ्गज्ञानी, मनःपयेयज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, स्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, संयतासंयत, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें जानना चाहिए। औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें देवगतिपञ्चकको जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जिसे औदारिकमिश्रकाययोगको प्राप्त हुए दो समय हुए,ऐसा अन्यतर दो गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धिका स्वामी है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जिसे वैक्रियिकमिश्रकाययोगको प्राप्त हुए दो समय हुए हैं,ऐसा अन्यतर जीव उनकी जघन्य वृद्धिका स्वामी है । इसी प्रकार आहारकमिश्रकायोगी जीवों में जानना चाहिए । कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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