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पदणिकखेवे सामित्तं
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उक० अवद्वाणं कस्स ? जो छव्विधबंधगो उकस्सजोगी पडिभग्गो तप्पाऑगजहण्णगे पडिदो तदो सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्क० अवड्डाणं । उक्कस्सादो जो जोगडाणादो पडिभग्गो यहि जोगट्ठाणे पडिदो तं जोगट्ठाणं थोत्रं । जहण्णगादो जोगstrict यहि उक्कसगं जोगट्टाणं गच्छदि तं जोगट्ठाणमसंखञ्जगुणं । एवं उकस्सगस्स अट्ठास्स साधणं । श्रीणगि ०३ - मिच्छ० अणंताणु ०४- असाद० णवंस ० णीचा० उक्क० बड्डी कस्स० ? जो अट्ठविधबंधगो तप्पाऔग्गजहण्णगो, तप्पा ओंग्गजहण्णगादो जोगहाणादो उकस्सजोगट्ठाणं गदो सत्तविध० जादो तस्स उक्क० वड्डी । उक० हाणी कस्स जो सत्तविधबंधगो उकस्सजोगी मदो सुहुमणिगोदजीवअपजत्तगेसु उववण्णो तप्पा ओंग्गजहण्णगे पडिदो तस्स उक्क० हाणी । उक्क० अवद्वाणं कस्स० ? जो सत्तविधबंगो उकस्सजोगी पडिभग्गो तप्पाऔग्गजह० जोगड्डाणे पडिदो अविधबंधगो जादो तस्स उक्क० अवड्डाणं । णिद्दा- पयला-पच्चक्खाण०४ - हस्स्र-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुं० उक्क० बड्डी कस्स० ? जो सम्मा० अड्डविधबंधगो तप्पाऔग्गजहण्णगादो जोगड्डाणादो उक्कस्सं जोगट्टाणं गदो सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? जो सम्मा० सत्तविधबंधगो उकस्सजोगी मढ़ो देवो जादो तप्पाऔग्गजहण्णजोगा
उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? छह प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला जो उत्कृष्ट योगवाला जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें पतित हुआ और उसके बाद सात प्रकार के कर्मो का बन्ध करने लगा वह उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । उत्कृष्ट योगस्थान से प्रतिभग्न होकर जिस योगस्थान में पतित हुआ वह योगस्थान स्तोक है, जघन्य योगस्थानसे जिस उत्कृष्ट योगस्थान में जाता है वह योगस्थान असंख्यातगुणा है । इस प्रकार यह उत्कृष्ट अवस्थानका साधनपद है । स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धीचतुष्क, असातावेदनीय, नपुंसकवेद और नीचगोत्रकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करने लगा वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कमोंका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगवाला जो जीव मरा और सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तकों में उत्पन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें पतित हुआ वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला जो उत्कृष्ट योगवाला जीव प्रतिभग्न हुआ और तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें पतित होकर आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करने लगा वह उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। निद्रा, प्रचला, प्रत्याख्यानावरणचतुष्क, हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला जो सम्यग्दृष्टि जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त हो सात प्रकारके कर्मों का बन्ध करने लगा वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कमका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो सम्यग्दृष्टि जीव मरा और देव होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें पतित हुआ वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उत्कृष्ट
१. ताप्रतौ 'पडिभंगो (ग्गो ) यहि' इति पाठः । २ आοप्रतौ 'जोगटाणे पडिदो तं जो गहाणमसंखेजगुणं' इति पाठः ।
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