SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमो १८६ जह० एग०, उक्क० सेढीए असंखें । अवत्त० जह० एग०, उक्क० अंतो० । ओरालि. तिण्णि पदा णत्थि अंतरं । अवत्त० जह० एग, उक्क० अंतो० । तित्थ भुज० अप्प० णत्थि अंतरं । अवढि० जह० एग०, उक० सेढीए असंखें। अवत्त० जह० एग०, उक्क० . वासपुधः । एवं ओषभंगो कायजोगि-ओरालि०-लोभ०-अचक्खु०-भवसि०आहारग त्ति । पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर जगश्रोणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। औदारिकशरीरके तीन पदोंका अन्तरकाल नहीं है । अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तीर्थकर प्रकृतिके भुजगार और अल्पतरपदका अन्तरकाल नहीं है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर जगश्रोणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है । इस प्रकार ओघके समान काययोगी, औदारिककाययोगी, लोभकषायवाले, अचक्षुदर्शनवाले, भव्य और आहारक जीवों में जानना चाहिए। विशेषार्थ-पाँच ज्ञानावरणादि और स्त्यानगृद्धित्रिक आदिके तीन पद एकेन्द्रियादि जीवोंके भी होते हैं, इसलिए इन पदोंका अन्तरकाल नहीं कहा है। तथा उपशमश्रेणिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण है, इसलिए पाँच ज्ञानावरणादिके अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण कहा है। तथा उपशमसम्यक्त्वका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात दिन-रात है। तदनुसार सम्यक्त्वसे च्युत होकर मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले जीवोंका अन्तरकाल भी उतना ही है, इसलिए स्त्यानगृद्धित्रिक आदिके अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर सात. दिन-रात कहा है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और प्रत्याख्यानावरणचतुष्कके भुजगार आदि तीन पदोंका अन्तरकाल न होनेका वही कारण है जो पाँच ज्ञानावरणादिके समय कह आये हैं। तथा उपशमसम्यक्त्वके साथ संयतासंयतगुणस्थानका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर चौदह दिन-रात है। और उपशमसम्यक्त्वके साथ संयतका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पन्द्रह दिन-रात है। तदनुसार कमसे कम एक समयतक और अधिकसे अधिक चौदह और पन्द्रह दिन-रात तक जीव क्रमसे संयतासंयतसे अविरत अवस्थाको और विरतसे विरताविरत अवस्थाको नहीं प्राप्त होते, इसलिए अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरणचतुष्कके अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर क्रमसे चौदह व पन्द्रह दिन-रात कहा है। दो वेदनीय आदिके चारों पद एकेन्द्रियादि जीव करते हैं, इसलिए इनके अन्तरकालका निषेध किया है, नरक, मनुष्य और देवगतिमें यदि कोई भी जीव उत्पन्न न हो तो कमसे कम एक समय तक और अधिकसे अधिक चौबीस मुहूर्ततक नहीं उत्पन्न होता। इसके अनुसार इन आयुओंके बन्धमें भी इतना अन्तर पड़ता है, इसलिए इन तीन आयुओंके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर चौबीस मुहूर्त कहा है । मात्र इनके अवस्थितपदका अन्तर योगस्थानोंके अनुसार होता है, इसलिए इस पदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। वैक्रियिकषट्क और आहारकद्विकके अवस्थितपदका अन्तरकाल इसीप्रकार घटित कर लेना चाहिए । तथा इन छह प्रकृतियोंका नाना जीव निरन्तर बन्ध करते रहते हैं, इसलिए इनके भुजगार और अल्पतरपद किसी न किसीके होते ही रहते हैं, अतः इनके अन्तरकालका निषेध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy