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________________ १८८ महाबंधे पदेसबंधाहियारे अंतरपरूवणा २०७. अंतराणुगमेण दुवि०-ओषे० आदे० | ओघे० पंचणा०-छदंस०-चदुसंज०भय-दु०-तेजा०-क०-वण्ण०४-अगु०-[उप०]-णिमि०-पंचंत० तिण्णि पदा णत्थि अंतरं । अवत्त० जह० एग०, उक्क० वासपुध० । थीणणि०३-मिच्छ०-अणंताणु०४. तिण्णि पदा णत्थि अंतरं । अवत्त० जह० एग०', उक्क० सत्तरादिदियाणि । एवं अपञ्चक्खाण०४ । [णवरि अवत्त० जह० एग०, उक्क० चौदस रादिदियाणि । पचक्खाण०४ एवं चेव । ] णवरि अवत्त० जह० एग०, उक्क. पण्णारसरादिदियाणि । दोवेदणी०-सत्तणोक०तिरिक्खाउ०-दोगदि-पंचजादि-छस्संठा०-ओरा०अंगो०-छस्संघ०-दोआणुक-पर-उस्सा.. आदाउजो०-दोविहा०-तसादिदसयुग०-दोगोद सव्वपदाणं णत्थि अंतरं । तिण्णिआउगाणं भुज०-अप्प०-अवत्त० जह० एग०, उक० चउवीसं मुहु० । अवट्ठि० जह. एग०, उक्क० सेढीए असंखें । वेउन्वियछक्कं आहारदुगं दोपदा णत्थि अंतरं । अवट्टि. तथा अपगतवेदको लगातार संख्यात समय तक संख्यात मनुष्य ही प्राप्त हो सकते हैं, इसलिए यहाँ अवस्थित और अवक्तव्य पदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है। शेष कथन स्पष्ट ही है। सासादन और सम्यग्मिथ्यात्व ये सान्तर मार्गणाएँ हैं और इनका काल मनुष्य अपर्याप्तकोंके समान है, इसलिए इनमें मनुष्य अपर्याप्तकोंके समान जाननेकी सूचना की है। इस प्रकार काल समाप्त हुआ। अन्तरप्ररूपणा २०७. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके तीन पदोंका अन्तरकाल नहीं है। अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके तीन पदोंका अन्तरकाल नहीं है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात दिन-रात है। इसी प्रकार अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके विषयमें जान लेना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौदह दिन-रात है। प्रत्याख्यानावरण चतुष्कका इसी प्रकार भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पन्द्रह दिन-रात है। दो वेदनीय, सात नोकषाय, तिर्यश्चायु, दो गति, पाँच जाति, छह संस्थान, औदारिक शरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, सादि दस युगल और दो गोत्रके सब पदोंका अन्तरकाल नहीं है। तीन आयुओंके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौबीस अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। वैक्रियिकषद्क और आहारकद्विकके दो पदोंका अन्तरकाल नहीं है। अवस्थित १. ता प्रतौ 'अवत्त० [ज०] ए.' इति पाठः । २. ता प्रतौ-'दसउ( यु०) दोगोद०' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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