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________________ महाबंध पदे सबंधाहियारे १६५ सम्मामि० देवगदि०४ तिण्णि पदा खेत्तभंगो । सेसाणं पगदीणं सव्वपदा अडचों० । असण्णी० खैत्तभंगो । अणाहार० कम्मइगभंगो । एवं फोसणं मतं । कालपरूवणा १८० । १६६. कालाणु० - दुवि० ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा० छदंसणा० अट्ठक० -भयदुगु० -तेजा० क० - वण्ण०४- अगु० -उप० णिमि० - पंचंत० तिणि पदा केवचिरं० ? सव्वद्धा । अवत्त० जह० एग०, उक० संखेजसम० श्रीणगि ०३ - मिच्छ० - अड्डक०ओरालि० तिण्णि पदा सव्वद्धा । अवत्त० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखें । तिणिआउ० भुज० - अप्प० जह० एग०, उक्क० पलिदो० असंखें । अवट्ठि ० - अवत्त० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखे० । वेउच्चियछ० दोपदा सच्वद्धा । अवट्ठि ० -अवत्त० जह० एग०, उक्क० आवलि० असंखे । आहारदुगं दोपदा सव्वद्धा । अवट्ठि ० -अवत्त० " १६५. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें देवगतिचतुष्कके तीन पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । शेष प्रकृतियोंके सब पर्दोके बन्धक जीवोंने सनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । असंज्ञी जीवों में क्षेत्रके समान भङ्ग है और अनाहारक जीवों में कार्मणकाययोगी जीवों के समान भङ्ग है । विशेषार्थ - यहाँ देवगति चतुष्कका तिर्यञ्च और मनुष्य बन्ध करते हैं, इसलिए इनके सब पदवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है । तथा शेष प्रकृतियोंका बन्ध देवोंके विहारादिके समय भी सम्भव है, इसलिए उनके सब पदवाले जीवोंका स्पर्शन नालीके कुछ कम आठ वटे चौदह भागप्रमाण कहा है। असंज्ञियों में क्षेत्रके समान और अनाहारक जीवों में कार्मणकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है, यह स्पष्ट ही है । इस प्रकार स्पर्शन समाप्त हुआ । कालप्ररूपणा १६६. काल दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओबसे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, आठ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीवांका कितना काल है ? सर्वदा काल है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, आठ कपाय और औदारिकशरीर के तीन पदोंके बन्धक जीवोंका सर्वदा काल है । तथा इनके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तीन आयुओं के भुजगार और अल्पतरपढ़के वन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। वैक्रियिकपटकके दो पदोंके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । तथा अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । आहारकद्विकके दो पदोंके बन्धक जीवोंका काल १. ता० प्रतौ ‘एवं फोसणं समत्तं' इति पाठो नास्ति । २. ता०प्रतौ ' आहारदुगुं [ गं ]' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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