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________________ [ १६ ] वरराद्धान्तामृतांभोनिधितरलतरंगोत्करक्षालितांत':करणं श्रीमेघचन्द्रव्रतिपतिपदपंकेरुहासक्तषट्चरणं तीव्रप्रतापोधृतविनतवलोपेतपुष्पेषुभृत्संहरणं सैद्धान्तिकाग्रेसरनेने नेगल्दं माधनंदिव्रतीन्द्रम् ॥४॥ श्रीपंचमियं नोंतुद्यापनमं माडि बरेसि राद्धान्तमना । रूपवती सेनवधू जितकोपं 'श्रीमाघनंदियतिगित्तल् ॥५॥ भद्रं भूयात् , वर्धतां जिनशासनम् । जिनका अन्तःकरण श्रेष्ठ सिद्धान्तरूपी अमृतजलनिधिके तरल तरङ्गकणोंसे प्रक्षालित हुआ है, जो श्री मेघचन्द्र व्रतिपतिके चरणरूपी कमलमें आसक्त भौंरेके समान हैं, जो तीव्र प्रतापी हैं, जिन्होंने विशाल बलशाली कामको जीत लिया है और सैद्धान्तिकोंमें अग्रेसर हैं, ऐसे माघनन्दि व्रतीन्द्र हुए ।।४।। सिद्धान्तको माननेवाली रूपवती सेनकी पत्नीने श्री पश्चमी व्रतका उद्यापन कर इस ग्रन्थको लिखवा कर जितक्रोध माघनन्दि यतिको समर्पित किया ।।५।। मङ्गल हो, जिनशासनकी वृद्धि हो । १. स्कटक्षालितांतः' म०प्र० पु० प्र० पृ. ४० । २. 'करणं श्रीमेवचंदवतपतिपंकेरुहासक्तषटपद ।। ......"स। चारणं सैद्धान्तिकाग्रेसरनेने नेगदमाघनंदिवतीन्द्रम् nen म०प्र० पु० प्र० पृ०४०। ३. 'नोतुद्यापनेयं' म० प्र० पु० प्र० पृ० ४०। ४. 'जितकोप' म० प्र० पु० प्र० पृ. ४०। ५. 'श्रीमाघनंदिवतपतिगित्तल' म० प्र० पु० प्र० पृ. ४० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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