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________________ भुजगारबंधे अंतरकालाणुगमो १३१ जह० अंतो०, उक० कायट्ठिदी। णिरयगदि-चदुजादि-णिरयाणु०-आदाव-थावरादि०४ भुज०-अप्प० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पंचासीदिसागरोवमसदं० । अवट्टि'० णाणाभंगो। तिरिक्ख०-तिरिक्खाणु०-उजो० भज०-अप्प० जह० एग०, उक्क० तेवद्विसागरोवमसदं। अवढि णाणा भंगो। अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तेवद्विसाम० सद० । दोगदि-वेउ०-वेउ०अंगो०-दोआणु० भुज-अप्प० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं० सादि०। अवढि० णाणा भंगो । पंचिंदि०-पर-उस्सा०-तस०४ तिण्णि पदा णाणा भंगो। अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पंचासीदिसागरोवमसद०। आहार०२ तिण्णि पदा जह० एग०, अवत्त० जह• अंतो०, उक० कायद्विदी० । ओरा०-ओरा०अंगो०-वजरि० भुज०-अप्प० जह० एग०, उक्क० तिण्णि पलिदो० सादिरे । अवट्ठि० णाणा भंगो । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं० सादि०। समचदु०-पसत्थ०-सुभग-सुस्सर-आदे० भज०-अप्प-अवढि० णाणाभंगो। अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० बेछाववि० सादि० तिण्णिपलि० देसू० । तित्थ० ओघं । उच्चा० प्रमाण है। इतनी विशेषता है कि अवस्थित पदका उत्कृष्ट अन्तर अपनी कायस्थितिप्रमाण है। मनुष्यायुके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक. समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है । नरकगति, चार जाति, नरकगत्यानुपूर्वी, आतप और स्थावर आदि चारके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और तोनों पदोंका उत्कृष्ट अन्तर एक सौ पचासी सागर है। तथा इनके अवस्थित पदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। तिर्यश्चगति, तियश्चगत्यानुपूर्वी और उद्योतके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एक सौ त्रेसठ सागर है। अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। तथा अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर एक सौ त्रेसठ सागर है। दो गति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग और दो आनुपूर्वीके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और तीनों पदोंका उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। तथा इनके अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। पञ्चेन्द्रियजाति, परघात, उच्छास और त्रसचतुष्कके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । तथा इनके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर एक सौ पचासी सागर है। आहार कद्विकके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका जधन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। औदारिकशरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग और वर्षभनाराचसंहननके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन पल्य है। अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। तथा अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। तथा अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य अधिक दो छयासठ सागरप्रमाण १ आ०प्रतौ-'सागरोवमसदपुधत्तं । अवहि' इति पाठः। २ आ०प्रतौ 'तेवहिसागरोसदपुधत्तं । अवहिः' इति पाठः। ३ ता० आ०प्रत्योः 'तस० २ तिण्णिपदा' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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