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________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे ओरा. ज. प. अणंतगुणं । तेजा. ज. प. विसे० । कम्म० ज० प० विसे । मणुसग० ज० प० संखेज्जगु० । जस०-अजस० ज० प० विसे । उवरि ओधि०भंगो याव सादासादा० ति। तदो वेउ० ज० प० असंगु० । आहार. ज. प. विसे । देवग० ज० प० संखेंजगुः । १४२. सासणे उक्कस्सभंगो याव केवलदं० । तदो ओरा० ज० प० अणंतग० । तेजा० ज० प० विसे । कम्म० ज० १० विसे । तिरिक्ख० ज० प० संखेंजग० । जस०-अजस० ज०प० विसे । मणुस० ज० प० विसे० । दुगु० ज० ५० संखेंजगु० । उवरिं उकस्सभंगो याव चदुदंसणावरणीय त्ति । तदो अण्णदरगोद० ज०प० संखेंजग० । अण्णदरवेदणी. ज. प. विसे० । वेउ० ज० प० असं०गु० । देवगदि० ज०प० संखेंजगु० । तिण्णिआउ० ज० प० संखेंजगु० ।। १४३. सम्मामि० ओधिणाणिभंगो याव केवलदसणावरणीय ति । तदो ओरा० ज. प. अणंतग० । तेजा ज० प० विसे० । कम्म० ज० प० विसे । वेउ० ज० ५० विसे० । मणुस० ज० प० संखेंजगु० । जस०-अजस० ज० प० विसे० । देवग० ज० ज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है। उससे आगे औदारिकशरीरका जघन्य प्रदेशाप्र अनन्तगुणा है। उससे तैजसशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे कार्मणशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे मनुष्यगतिका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे यश कीर्ति और अयशःकोर्तिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे आगे सातावेदनीय और असातावेदनीयका अल्पबहुत्व प्राप्त होने तक अवधिज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है। उससे आगे वैक्रियिकशरीरका जघन्य प्रदेशाप असंख्यातगुणा है। उससे आहारकशरीरका जघन्य प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे देवगतिका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। १४२. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें केवलदर्शनावरणका भङ्ग प्राप्त होनेतक उत्कृष्टके समान भन है। उससे आगे औदारिकशरीरका जघन्य प्रदेशाप्र अनन्तगुणा है। उससे तैजसशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे कार्मणशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे तिर्यञ्चगतिका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे यश कीर्ति और अयश-कीर्तिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे मनुष्यगतिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे जुगुप्साका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे आगे चारों दर्शनावरणीयका भङ्ग प्राप्त होने तक उत्कृष्टके समान भङ्ग है । उससे आगे अन्यतर गोत्रका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे अन्यतर वेदनीयका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे वैक्रियिकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। उससे देवगतिका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे तीन आयुका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। ___१४३. सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंमें केवलदर्शनावरणीयका भङ्ग प्राप्त होने तक अवधिज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है । उससे आगे औदारिकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है। उससे तैजसशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे कार्मणशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे वैक्रियिकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे मनुष्यगतिका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे यशःकीर्ति और अयश कीर्तिका जघन्य प्रदेशाम विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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