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महाबंधे पदेसबंधाहियारे ज० ५० संखेज्जगु० । जस०-अजस० ज० प० वि० । मणुस० ज० प० वि० । णिरयदेवग० ज० प० वि० । दुगु० ज० ५० संखेज्जगु० । उवरिमणजोगिभंगो।
१३७. आभिणि-सुद-ओधि० उक्करसभंगो याव केवलदंसणावरणीय त्ति । तदो ओरा० ज०प० अणंतगु० । तेजा ज. प. विसे० । कम्मइ. ज. प. विसे० । वेउ० ज०प० विसे । मणुस० ज० प० संखेंज्जगु० । जस०-अजस० ज० प० विसे । दोगदि० ज. प. विसे० । दुगुं० ज०प० संखेंज्जगु० । उवरि याव अणुदिस विमाणवासियदेवभंगो याव सादासादा० त्ति । तदो आहार० ज० प० असं०गु० । दो आउ० ज० प० संबज्जगु०।
१३८. मणपज्जवणाणीसु उक्कस्सभंगो याव केवलदसणावरणीय ति । तदो वेउ. ज० प० अणंतगु० । आहार० ज० प० विसे० । तेजा० ज० प० विसे० । कम्म० ज० प० विसे० । देवगदि ज० ५० संखेज्जगु० । जस० ज० प० वि० । अजस० ज० ५० विसे० । दुगुं० ज० प० संखेज्जगु० । उवरिं आहारकायजोगिभंगो। एवं संजद
संख्यातगणा है । उससे यशःकीर्ति और अयशःकीर्तिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे मनुष्यगतिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे नरकगति और देवगतिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे जुगुप्साका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे आगे मनोयोगी जीवोंके समान भङ्ग है।
१३७. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें केवलदर्शनावरणीयका अल्पबहुत्व प्राप्त होने तक उत्कृष्टके समान भङ्ग है। उससे आगे औदारिकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है । उससे तैजसशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे कार्मणशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे वैक्रियिकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे मनुष्यगतिका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे यशःकीर्ति और अयश कीर्तिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे दो गतिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे जुगुप्साका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे आगे सातावेदनीय और असातावेदनीयका अल्पबहुत्व प्राप्त होने तक अनुदिशविमानवासी देवोंके समान भङ्ग है। उससे आगे आहारकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। उससे दो आयुका जघन्य प्रदेशान संख्यातगुणा है।
१३८. मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें केवलदर्शनावरणीयका अल्पबहुत्व प्राप्त होने तक उत्कृष्टके समान भङ्ग है । उससे आगे वैक्रियिकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है। उससे आहारकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे तैजसशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे कार्मणशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे देवगतिका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे यश कीर्तिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे अयशःकीर्तिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे जुगुप्साका जघन्य प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। उससे आगे आहारककाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है। इसी प्रकार संयत, सामायिकसंयत, छेदो
१ ता०प्रतौ 'उवरिम जोगिमंगो' आ०प्रतौ 'उवरिमजोगिभंगो' इति पाठः । २ ता० आ०प्रत्योः 'केवलणाणावरणीय' इति पाठः ।
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