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________________ महाबंघे पदेसंबंधाहियारे ५७. तेउ-पम्माणं सत्तण्णं क० ज० प० क० १ अण्ण० देवस्स वा मणुसस्स वा पढम० तब्भव ० ज०जो० । आउ० ज० प० क० ? अण्ण० तिगदि ० अट्ठविध ० घोड०ज०जो० । सुक्काए पम्मभंगो । २८ ५८. उवसम० सत्तण्णं क० ज० प० क० ? पढमसमयदेवस्स ज०जो० । सासणे सत्तण्णं क० ज० प० क० ? अण्ण० तिगदि० पढम० तब्भव० जह०जो० वट्ट० । आउ० घोडमा०ज०जो० । सम्मामि० सत्तण्णं क० ज० प० क० ? अण्ण० चदुग० घोडमा० ज० जो० । ५९. सण्णी सत्तणं क० ज० प० क० ? अण्ण० सण्णि०' मिच्छा० पढम०तन्भवत्थ० जह०जो० । आउ० ज० प० क० १ अण्ण० खुद्दाभ० तदियपढमसमए वष्ट० ज० जोगिस्स । एवं सामित्तं समत्तं । कालपरूवणा ६०. कालं दुविधं - जहण्णयं उक्कस्सयं च । उक्कस्सए पगदं । दुदि० – ओघे० ५७. पीत और पद्मलेश्यामें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर देव और मनुष्य प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ है और जघन्य योगवाला है, वह उक्त सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर तीन गतियोंका जीव आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध कर रहा है और घोटमान जघन्य योगवाला है, वह आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । शुकुलेश्या में पद्मलेश्याके समान भङ्ग है । ५८. उपशमसम्यक्त्वमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर प्रथम समयवर्ती देव जघन्य योगवाला है, वह सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्ध का स्वामी है । सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर तीन गतियोंका जीव प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगमें विद्यमान है, वह उक्त सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी घोलमान जघन्य योगवाला जीव है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चारों गतियोंका जीव घो मान जघन्य योग में अवस्थित है, वह सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । ५९. संज्ञियोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर संज्ञी मिध्यादृष्टि जीव प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगवाला है, वह उक्त सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर जीव क्षुल्लक भवग्रहणके तृतीय भागके प्रथम समय में विद्यमान है और नघन्य योगवाला है, वह आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ । कालप्ररूपणा - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो श्रसपिण० इति पाठः । For Private & Personal Use Only ६०. काल दो प्रकारका है १. ता० प्रा० प्रत्योः अण्ण० Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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