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महाबंधे पदेसबंधाहियारे मणुसपअत्त-मणुसिणीसु।
२९. देवाणं णिरयभंगो याव उवरिमगेवजा' त्ति । अणुदिस याव सव्वट्ठ त्ति एवं । णवरि सम्मादिहिस्स सत्तविधवं० उक०जो० उक्क० पदे०७० | आउ० उक्क० पदे० अट्ठविध० उक्क० ।
३०. पंचिंदि० छण्णं क. ओघ । मोह० उक्क पदे० क० ? अण्ण. चदुगदिय० सण्णिस्स मिच्छा० वा सम्मा० वा सत्तविधबंधग० उक्क० । एवं आउ० । णवरि अट्ठविध० उक्क०। एवं पंचिंदियपजत्त० ।
३१. तस०२ छण्णं क. ओघ । सेसं पंचिंदियभंगो। णवरि अण्ण० चदुगदिय० पंचिं० सण्णि० मिच्छा० वा सम्मा० वा सत्तविधवं उक० । एवं आउ० । णवरि अट्ठविध० उक्क० ।
३२. पंचमण-तिण्णिवचि० छण्णं क० ओघ । मोह० उ० अण्ण० चदुगदि० सम्मा० वा मिच्छा० वा सत्तविधवं उक्क० । एवं आउ० णवरि अहविध० है कि यह आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला होता है। इसी प्रकार मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंके जानना चाहिए।
___२९. देवांमें उपरिम ग्रैवेयक तक नारकियोंके समान जानना चाहिए। अनुदिशांसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो सम्यग्दृष्टि सात प्रकारके कर्मो का बन्ध कर रहा है, उत्कृष्ट योगवाला है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह सात कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है तथा जो आठ प्रकारके कर्माका बन्ध कर रहा है, उत्कृष्ट योगवाला है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह आयुकमके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है।
३०. पश्चेन्द्रियों में छह कोका भङ्ग ओघके समान है। मोहनीयकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चारों गतियोंका संज्ञी मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट योगवाला है, वह मोहनीयकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध कर रहा है, उत्कृष्ट योगवाला है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध कर रहा है,वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार पश्नेन्द्रियपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए।
३१. त्रस और त्रसपर्याप्त जीवोंमें छह कर्माका भंग ओघके समान है। शेष दो कर्मों का भंग पञ्चेन्द्रियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि जो अन्यतर चारों गतियोंका पञ्चेन्द्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध कर रहा है,वह मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार आयुकर्म के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है।
३२. पाँचों मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवोंमें छह कर्मों का भंग ओघके समान है। मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है? जो अन्यतर चारों गतियोंका : या मिथ्यादृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मो का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित
१. ता० प्रतौ उवरिम केवजा इति पाठः।
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