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________________ ३३८ महाबंधे पदेसंबंधा दियारे अंगो० - संघ० - दोआणु ० पर० उस्सा० उज्जो० दोविहा० तसादिदसयुग० सिया० तं० तु ० संखेजदिभाग०भ० । तेजा० क० वण्ण०४- अगु० - उप० णिमि० णि० बं० तंतु० संखैजदिभागब्भ० । एवं चदुणा० णवदंस ० - दोवेद०-मिच्छ० -सोलसक०णवणोक० - दोगोद० - पंचतरा० । णवरि सादावेद० बंधंतस्स ० णिरयगदितिगं वज असादावेदणीयं बंधतस्स देवाउ ० वज० । ५४४. इत्थि० जह० पदे०चं० पंचणा० णवदंस० - मिच्छ० - सोलसक० -भय-दु ०. पंचत० णि० बं० णि० जह० । दोवेद ० चदुणोक० - तिण्णिआउ०- दोगदि-वेउब्वि०उव्व-गो० - दोआणु० -उजो० - दोगोद० सिया० जह० । तिरिक्ख० - ओरालि०छस्संठा० - ओरालि० अंगो० छस्संघ० तिरिक्खाणु ० दोविहा० - थिरादिछयु० सिया० तं तु० संखेजदिभाग भ० | पंचिंदि० तेजा० क० वण्ण०४- अगु०४-तस०४- णिमि० णि० नं० आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्रास, उद्योत, दो विहायोगति और त्रस आदि दस युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियम से संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है । तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है । किन्तु वह इनका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है । इसी प्रकार अर्थात् आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके कहे गये उक्त सन्निकर्षके समान चार ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिध्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, दो गोत्र और पाँच अन्तरायका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सातावेदनीयका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके नरकगतित्रिकको छोड़कर सन्निकर्ष कहना चाहिए। तथा असातावेदनीयका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके देवायुको छोड़कर सन्निकर्ष कहना चाहिए । ५४४. स्त्रीवेदका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा और पाँच अन्तरायका नियम से बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । दो वेदनीय, चार नोकपाय, तीन आयु, दो गति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, दो आनुपूर्वी, उद्योत और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । तिर्यञ्चगति, औदारिकशरीर, छद संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति और स्थिर आदि छह युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। पचेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रस चतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है । किन्तु वह इनका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यात १. आ०प्रतौ 'छत्संघ० पर०' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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