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महाबंचे पदेसंबंधाहिया रे
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संखेजदिभागन्भ० । एवं आहार० -तेजा० क० ' - दोअंगो० । चदुसंठा ० चदु संघ ० तिरिक्खगदिभंगो | णवरि पंचिंदि० धुव० ।
पदे०ब०
३३२
५३१. सुहुम ० जह० पंचणा० णवदंसणा०-मिच्छ०-सोलसक०बुंस०-भय-दु० -णीचा० - पंचंत० णि० बं० णि० जह० । दोवेद० चदुणोक० - साधार० सिया० जह० । तिरिक्खाउ० णि० जह० । तिरिक्ख० एइंदि० ओरालि०-तेजा० क०हुंड ० वण्ण०४- तिरिक्खाणु० - अगु०४ - [थावर० पञ्जत्त०] दुर्भाग- अणादे०१०- अजस० - णिमि० foto 10 अजह० संखेज दिभागन्भहियं । पत्तेय ० - थिराथिर - सुभासुभ० सिया० संखेअदिभाग०भ० । एवं साधार० ।
५३२. अपज० जह० पदे०चं० पंचणा० णवदंसणा०-मिच्छ० सोलसक० णवुंस०भय-दु०-णीचा० - पंचत० णि० बं० णि० जह० | दोवेद० चदुणोक० - दोआउ० सिया० जह० । दोगदि-चदुजादि - दोआणु० सिया० संखेजदिभाग भ० । ओरालि० - तेजा० क०
प्रकार अर्थात् वैक्रियिकशरीरका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके कहे गये उक्त सन्निकर्षके समान आहारकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर और दो आङ्गोपाङ्गका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवका कहना चाहिए। चार संस्थान और चार संहननका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवका सन्निकर्ष तिर्यगतिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके कहे गये सन्निकर्षके समान जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि पञ्चेन्द्रियजातिका नियमसे बन्ध करता है ।
५३१. सूक्ष्मकर्मका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, भय, जुगुप्सा, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका नियम से बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । दो वेदनीय, चार नोकषाय और साधारणका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। तिर्यवायुका नियमसे बन्ध करता है जो इसका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। तिर्यगति, एकेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्जगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, स्थावर, पर्याप्त, दुर्भग, अनादेय, अयशः कीर्ति और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियम से संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है । प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, शुभ और अशुभका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार अर्थात सूक्ष्मकर्मका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके कहे गये उक्त सन्निकर्ष के समान साधारण कर्मका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवका सन्निकर्ष कहना चाहिए ।
५३२. अपर्याप्तका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, भय, जुगुप्सा, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । दो वेदनीय, चार नोकषाय और दो आयुका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । दो गति, चार जाति और दो आनुपूर्वीका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियम से संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है । औदारिकशरीर, तैजसशरीर,
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१. ताप्रती 'आहार । ते० क०' इति पाठः ।
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