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________________ ३२६ महाबंधे पदेसबंधाहियारे जह । तिरिक्ख०-ओरालि०-वण्ण०४-अगु०-उप०-णिमि० णि० ब .तु. संखेंजदिभागब्भहियं । पंचजादि-छस्संठा०-ओरा० अंगो०-छस्संघ०-पर-उस्सा०-उज्जो०दोविहा०-तसादिदसयुग० सिया० तंन्तु० संखेजदिभागभहिय" । तेजा०-क०णि०० संखेजदिभागब्भ० । ५२१. मणुसाउ० जह० प०० पंचणा-पंचंत० णि० ब० णि० जह० । थीणगिद्धि०३-दोवेद०-मिच्छ ०- अणंताणु०४-इथि०-णवंस०-अपज० . तित्थ०-दोगोद० सिया० जह० । छदंस०-बारसक०-भय-दु० णि, बं० णि. तंतु० अणंतभागब्भहिय ब। पंचणोक० सिया. तं० तु. अणंतभागब्भहिय । मणुस०-पंचिंदि०ओरालि०-ओरालि०अंगो०-वण्ण०४-मणुसाणु० - अगु०-उप०-तस-बादर - पत्ते-णिमि० और आतपका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। तिर्यश्च गति, औदारिकशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका जघन्य प्रदेशवन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। पाँच जाति, छह संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, परघात, उच्छ्रास, उद्योत, दो विहायोगति और त्रस आदि दस युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। तैजसशरीर और कार्मणशरीरका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। ५२१. मनुष्यायुका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। स्त्यानगृद्धित्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अपर्याप्त, तीर्थङ्कर और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। पाँच नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। मनुष्यगति, पश्चन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वणचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, बस, बादर, प्रत्येक और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक १. ता०प्रतौ 'सिया० [तं तु०] संखेजदिभा०' प्रा०प्रतौ 'सिया तं तु० संखेजदिभागब्भहियं' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'ज० [ पदे. बं. ] पंचणा०' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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