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उत्तरपगदिपदेसबंधे सष्णियासं
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आदाव० - तित्थ० - [दोगोद ० ] सिया० जह० । छदंस० बारसक०-भय-दु० णि० ' तं०तु० अनंतभाग भहियं । पंचणोक० सिया० तं० तु० अनंतभागन्भहियं ब० । दोगदिरपंचजादि-ओरालि० - छस्संठा० - ओरालि० अंगो० छस्संघ० : दोआणु० पर० उस्सा०उओ० दोविहा० तसादिदसयुग० सिया० तंतु० संखजदिभागन्भहियं बं० | तेजा०क० णिद्दाए भंगो । वष्ण०४- अगु० - उप०- - णिमि० णि० तं तु ० संखैज्जदिभाग भहियं बं० । वेउन्वि ० उव्वि ० अंगो० ३ सिया० संखेंज्जगुणन्भहियं बं० । 1
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५१७. इत्थि० जह० पदे०चं० पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ० - सोलसक० -भय-दु०पंचत० णि० चं० णि० जह० । दोवेदणी ० चदुणोक० - तिण्णिआउ०- उजो० * - दोगोद ० सिया० जह० । तिरिक्ख० ओरालि० छस्संठा ०-ओरालि ० अंगो० छस्संघ० - तिरिक्खाणु०द्विक, आतप, तीर्थङ्कर और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु इनका जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है । पाँच नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका अनन्तभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है । दो गति, पाँच जाति, औदारिकशरीर, छह संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्रास, उद्योत, दो विहायोगति और त्रस आदि दस युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है । तैजसशरीर और कार्मणशरीर का भङ्ग निद्राका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके इनका जिस प्रकार सन्निकर्ष कह आये हैं, उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए। वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो जघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है और अजघन्य प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभाग अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्गका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातगुणा अधिक अजघन्य प्रदेशबन्ध करता है ।
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५१७. स्त्रीवेदका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिध्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है । दो वेदनीय, चार नोकषाय, तीन आयु, उद्योत और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। तिर्यञ्चगति, औदारिकशरीर, छह संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, तिर्यञ्च गत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति 'णि०' इति पाठः ।
वेडव्वि० अंगो०' इति पाठः । उज्जो' इति पाठः ।
१. ताप्रतौ 'छ [ दंसणा० नि० ब० नि० ' श्र०प्रतौ 'छदंस' २. श्र०प्रतौ 'तं तु० । दोगदि०' इति पाठः । ३. श्र०प्रतौ 'वेउच्वि० सिया० ४. ता० प्रतौ 'भयदु० [ पंचदंस० ] उज्जो० ' श्रा० प्रतौ 'भय-दु० पंचदस
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