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________________ ३०१ उत्तरपगदिपदेसबंधे सण्णियासं छयुग-तित्थ० सिया० तन्तु० संखेजदिभागणं । तेजा०-क०-वण्ण०४-अगु०४-बादरपजत्त-पत्ते-णिमि० णिव तंन्तु० संखेंजदिभागणं । एवं चदुणा०-पंचंत०।। ४८१. णिहाणिदाए उक्क० पदे०२०' पंचणा०-दोदंस०-मिच्छ०-अणंताणु०४पंचंत० णि०० णि० उक्क० । छदंस०-बारसक०-भय-दु० णि० ब० अणंतभागणं । दोवेद०-इत्थि०-णस०-दोगदि०-वेउवि० [ वेउबि०-] अंगो०-दोआणु० - आदाव०. दोगोद० सिया० उक्क० । [पंचणोक० सिया० अर्णतभागणं बं०] । तिरिक्ख०दोजादि-ओरालि०-छस्संठा०-ओरालि अंगो०-छस्संघ-तिरिक्खाणु०-[उजो-दोविहा०. तस-थावर-थिरादिछयुग० सिया० तंतु० संखेंजदिभागणं० । तेजा०-क०-वण्ण०४४-अगु०४-बादर-पज्जत्त-पत्ते-णिमि०२ णि तंतु० संखेंजदिभागणं० । एवं दोदंस० बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माण का नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार चार ज्ञानावरण और पाँच अन्तरायकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ४८१. निद्रानिद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, दो दर्शनावरण, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, दो गति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, दो आनुपूर्वी, आतप और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । पाँच नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । तिर्यञ्चगति, दो जाति, औदारिकशरीर, छह संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस, स्थावर और स्थिर आदि छह युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुस्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो वह इनका संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार अर्थात् निद्रानिद्राका रत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवके कहे गये सन्निकर्षके समान दो दर्शनावरण, १.ताप्रती 'तं तु।... [ए. उक० पदे०] बं.' प्रा०प्रतौ 'तं तु....."ए. उक्क. पदे०बं०' इति पाठः। २. ता०प्रती 'अगु०४..."[अन्न क्रमांकरहितः ताडपत्रोस्ति ] णिमि०'. आ०प्रतौ 'अगु०४ ...."णिमि.' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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