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________________ विषय- परिचय १५ कर्षका विचार किया जाता है और परस्थान सन्निकर्ष में विवक्षित प्रकृतिके साथ बन्धको प्राप्त होनेवाली सब उत्तर प्रकृतियोंके सन्निकर्षका विचार किया जाता है। यतः यह प्रदेशवन्धका प्रकरण है, अतः यहाँ उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध और जघन्य प्रदेशबन्ध के आश्रयसे स्वस्थान और परस्थान सन्निकर्षके दो-दो भेद करके विचार किया गया है। उसमें भी पहले उत्कृष्ट स्वस्थान सन्निकर्ष और उत्कृष्ट परस्थान सन्निकर्षका विचार करके बादमें जघन्य स्वस्थान सत्रिकर्ष और जघन्य परस्थान सन्निकर्षका विचार किया गया है। उदाहरणस्वरूप आभिनियोधिक ज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मन:पर्ययज्ञानावरण और केवलज्ञानावरणका नियमसे उत्कृष्ट बन्ध करता है। यह उत्कृष्ट स्वस्थान सन्निकर्पका एक उदाहरण है। इसीप्रकार ओघ और आदेशसे सब खनिकर्ष घटित करके बतलाया गया है। यहाँ उत्कृष्ट सन्निकर्षके अन्तमें सत्रिकर्षकी सिद्धिके कुछ उदाहरण देते हुए मूल प्रकृतिविशेष, पिण्डप्रकृति विशेष और उत्तर प्रकृत्ति विशेषका परिमाण आवलिके संस्थातवें भागप्रमाण बतलाकर पवाइजमाण' और 'अपवाइजमाण 'उपदेशके अनुसार इन तीन विशेषोंके अल्पबहुत्वका निर्देश किया है भङ्गविचयप्ररूपणा – उस अनुयोगद्वारमें ओघ और आदेशसे सब मूल व उत्तर प्रकृतियोंके उत्कृष्ट व जघन्य प्रदेशवन्धके भङ्गका नाना जीवों की अपेक्षा विचार किया गया है। उसमेंसे मूलप्रकृतियों की अपेक्षा भट्ट विषय प्रकरण नष्ट हो गया है, यह हम पहले ही सूचित कर आये हैं। ओपसे उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा इस प्रकरणको प्रारम्भ करते हुए सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशका बन्ध करनेवाले जीवों का भङ्ग मूल प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाले जीवोंके समान जाननेकी सूचना की है। मात्र नरकायु, मनुष्यायु और देवायु इन तीन आयुओंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाले जीवोंके आठ-आठ भङ्ग जाननेकी सूचना की है। आगे वह ओघप्ररूपणा जिन मार्गणाओं में सम्भव है, उनमें ओघ के समान जानने की सूचना की है और जिनमें विशेषता है, उनमें उसका अलगसे निर्देश किया है । ओघसे जघन्य भङ्गविषयको प्रारम्भ करते हुए नरकायु, मनुष्यायु भीर देवायु ये तीन आयु, वैकिविकपट्क, आहारकद्विक और तीर्थंकर इनके जघन्य और अजघन्य भङ्गविचयका भङ्ग उत्कृष्ट प्ररूपणा के समान जाननेकी सूचना की है। तथा शेष प्रकृतियों के जघन्य और अजघन्य प्रदेशों के बन्धक और अबन्धक नाना जीव हैं, यह बतलाया है । यह ओघप्ररूपणा है । यह जिन मार्गणाओं में सम्भव है उनमें ओघके समान जानने की सूचना की है और शेष मार्गणाओं में विशेषता के साथ भङ्गविचयका निर्देश किया है । भागाभागप्ररूपणा - मूल प्रकृतियोंकी अपेक्षा भागाभागप्ररूपणा भी नष्ट हो गई है। उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा ओघसे भागाभागका निर्देश करते हुए तीन आयु, वैक्रियिक छह और तीर्थङ्कर प्रकृतिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव इनका बन्ध करनेवाले जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण बतलाये हैं। आहारकद्विकका उत्कृष्ट प्रदेशस्थ करनेवाले जीव संख्यातवें भागप्रमाण और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव संख्यात बहुभागप्रमाण बतलाये हैं । तथा इनके सिवा शेष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव अनन्तवें भागप्रमाण और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव अनन्त बहुभागप्रमाण बतलाये हैं। आगे जिन मार्गणाओंमें यह ओघद्ररूपणा सम्भव है उनमें भधप्ररूपणा के समान जाननेकी सूचना करके शेष मार्गणा में जो विशेषता सम्भव है। उसका निर्देश किया है । जघन्य भागाभागका निर्देश करते हुए बतलाया है कि आहारकद्विकका भङ्ग तो उत्कृष्टके समान है और शेष प्रकृतियोंका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं और अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। आदेशसे सब मार्गणाओं में सामान्यसे इसीप्रकार जाननेकी सूचना करके संख्यात संख्यावाली मार्गणाओं में सब प्रकृतियोंका भङ्ग आहारकशरीरके समान जाननेकी सूचना की है। परिमाणप्ररूपणा - मूल प्रकृतियोंकी अपेक्षा प्रतिपादन करनेवाली यह प्ररूपणा भी नष्ट हो गई है। उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा ओघसे परिमाणका निर्देश करते हुए बतलाया है कि तीन आयु और वैकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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