________________
उत्तरपगदिपदेसबंधे सामित्तं
१३३ जजो० । तिरिक्ख-मणुसाउ० ज० प० ० १ अण्ण० चदुग० घोल• अविध० ज०जो० । देवाउ० ज० प० क० ? अण्ण० दुगदि० घोल० अढविध० ज०जो० । देवगदि० जह० दुगदि. घोल० अट्ठावीसदि० सह अट्ठविध० ज०जो० । तिरिक्खगदिदंडओ जह० तिगदि० पढम०तब्भव० तीसदि० सह सत्तविध० ज०जो० । एवं मणुस०-मणुसाणु० जह० एगुणतीसदि० ज०जो०!
____२२३. सम्मामि० पंचणा०दंडओ जह० चदुगदि० घोल सत्तविध० ज०जो० । मणुसगदिदंडओ जह० देव० णेरइ० ऊणत्तीसदि० सह सत्तविध० ज०जो० । देवगदि०४ ज० ५० क० ? अण्ण० दुगदि० अट्ठावीसदि० सह सत्तविध० ज०जो० ।
२२४. सण्णीसु पंचणा०-णवदंस०-दोवेदणी०-मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक०दोगो०-पंचंत० ज० प० क० ? असण्णिपच्छा० पढम० तब्भव० सत्तविध० ज०जो० । दोआउ० मणजोगिभंगो । तिरिक्ख-मणुसाउ० ज० प० क० ? अण्ण० दुगदियस्स खुद्दाभवग्गहणतदियतिभागस्स पढमसमए आउगबंधमा० अहविध० ज०जो० । समयवर्ती आहारक, प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगवाला अन्यतर तीन गतिका जीव है। तियश्चायु और मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका घोलमान जीव उक्त दो आयुओंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । देवायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका घोलमान जीव देवायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी अट्ठाईस प्रकृतियोंके साथ आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका घोलमान जीव है । तिर्यश्चगतिदण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर तीन गतिका जीव है । इसी प्रकार मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वी के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त तीन गतिका जीव है।
२२३. सम्यग्मिथ्यात्वमें पाँच ज्ञानावरणदण्डकके जघन्य प्रदेशयन्धका स्वामी सात प्रकार के कर्मोंका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर चार गतिका जीव है। मनुष्यगतिदण्डकके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर देव और नारकी है । देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त अन्यतर दो गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है।
२२४. संज्ञियोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, दो गोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयवी तद्भवस्थ, सात प्रकारके कोका बन्ध करनेवाला और जघन्य योगसे युक्त असंज्ञियोंमेंसे आकर उत्पन्न हुआ जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । दो आयुओंका भङ्ग मनोयोगी जीवोंके समान है। तिर्यश्चायु और मनुष्यायुके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? क्षुल्लक भवग्रहणके तृतीय त्रिभागके प्रथम समयमें आयुकर्मका बन्ध करनेवाला आठ प्रकारके
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org