SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे मिच्छा. अहविध० उ०जो० । तिरिक्ख०-पंचसंठा०-पंचसंघ-तिरिक्खाणु०-अप्पसत्थवि०-भग-दुस्सर-अणार्दै० उ० प०बं० क० ? अण्ण० मिच्छा० सव्वाहि पज० एगुणतीसदिणामाए सह सत्तविध० उ०जो० । मणुस-पंचिं०-तिण्णिसरी०-समचदु०-ओरा०अंगो०-वज रि०-वण्ण०४ -मणुसाणु०-अगु०४-पसत्थ०-तस०४-थिराथिर-सुभासुभ-सुभगसुस्सर-आदें-जस०-अजस-णिमि० उ० प०७० क० ? अण्ण० सम्मा० मिच्छा० सव्वाहि पन्ज ० एगुणतीसदिणामाए सह सत्तविध० उ०जो०। उजो० उ० प०५० क० १ अण्ण० मिच्छा० सव्वाहि पज० तीसदिणामाए सह सत्तविध० उ०जो० । तित्थ. उ०प०७० क. ? अण्ण० सम्मा० सव्वाहि पञ्ज. तीसदिणामाए सह सत्तविध० उ०जो० । एवं पढम० विदिय० तदिय० । चउत्थीए याव छट्टि त्ति एवं चेव । णवरि तित्थ० वज० । सत्तमाए णिरयोघं । णवरि मणुसगदि-मणुसाणु० उ०प०बं० क. ? अण्ण० सम्मा० एगुणतीसदिणामाए सह सत्तविध० उ०जो० । उच्चा० उ०प०७० क० ? अण्ण ० सम्मा० सत्तविध० उ०जोगिस्स । १७४. तिरिक्खेसु पंचणा० सादासाद० उच्चा०-पंचंत० उ०प०० क० १ अण्ण. तिर्यश्चगति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यञ्च गत्यानुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, तीन शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराच संहनन, वणेचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति और निर्माणके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, नामकर्मकी । प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि नारकी उद्योतके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । तीर्थङ्करप्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि नारकी तीर्थङ्करप्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसीप्रकार पहली, दूसरी और तीसरी पृथिवीमें जानना चाहिए। इसी प्रकार चौथी पृथिवीसे छठवीं पृथिवी तक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इन पृथिवियोंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिको छोड़कर कहना चाहिए। सातवीं पृथिवीमें सामान्य नारकियोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यगति, और मनुष्यगत्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? नामकर्मकी उनतीस प्रकृसियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। उच्चगोत्रके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कूर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि नारकी उच्चगोत्रके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। १७४. तिर्यञ्चोंमें पाँच ज्ञानावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, उच्चगोत्र और पाँच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy