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________________ चदुवीसअणिओगद्दाराणि तित्थयरणामा एवं पत्तेयं पत्तेयभागो। चदुण्णं आणुपुब्बियाणं दोण्णं विहायगदीणं तसादिदसयुगलाणं ऐकको चेव भागो। यो अण्णदरगोदे भागो आगदो सो समयपबद्धस्स अट्ठमभागो त्ति णादव्यो। यो अण्णदरे अंतराइगे भागो आगदो सो समयपबद्धस्स अट्ठमभाग० पंचमभागो त्ति णादव्यो। एवं भागाभागं समस चदुवीसअणिओगद्दाराणि यं सव्वधादिपत्तं सगकम्मपदेसाणंतिमो भागो। आवरणाणं चदुधा तिधा च तत्थ पंचधा विग्धे । मोहे दुधा चदुद्धा पंचधा वा पि बज्ज्ञमाणीणं । वेदणीयाउगगोदे य बज्झमाणीणं भागो से । १६८. एदेण अहपदेण तत्थ इमाणि चदुवीसमणियोगद्दाराणि-हाणपरूवणा सबबंधो णोसव्वबंधो एवं मूलपगदीए तथा णेदव्वं । कर्म इनमेंसे प्रत्येकके लिये इसी प्रकार एक एक भाग मिलता है। चार आनुपूर्वी, दो विहायोगति और त्रसादि दस युगलोंके लिये एक एक ही भाग मिलता है। अन्यतर गोत्रकमके जो भाग आया है वह समयप्रबद्धका आठवाँ भाग जानना चाहिये । जो अन्यतर अन्तरायके लिये भाग आया है वह समयप्रबद्धके आठवें भागका पाँचवाँ भाग जानना चाहिये । विशेषार्थ यहाँ आठों कोंकी उत्तर प्रकृतियोंमें प्रदेशबन्धके भागाभागका विचार किया गया है। गोम्मटसार कर्मकाण्डके प्रदेशबन्ध प्रकरणमें इस भागाभागका विशेष विचार किया है, इसलिये इसे वहाँसे जान लेना चाहिये । यहाँ उसका बीजरूपसे विचार किया है। इस प्रकार भागाभाग समाप्त हुआ। चौबीस अनुयोगद्वार जो अपने कर्मप्रदेशोंका अनन्तवाँ भाग सर्वघातिपनेको प्राप्त है उससे अतिरिक्त शेष द्रव्य आवरण कर्मों में चार और तीन प्रकारका है। अन्तरायकर्ममें पाँच प्रकारका है। मोहनीय कर्ममें बँधनेवाली प्रकृतियोंका दो प्रकारका, चार प्रकारका और पाँच प्रकारका है। जो वेदनीय, आयु और गोत्र कर्ममें भाग है वह बँधनेवाली प्रकृतियोंका है। १६८. इस अर्थपदके अनुसार वहाँ ये चौबीस अनुयोगद्वार होते हैं-स्थानप्ररूपणा, सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध इत्यादि मूलप्रकृतिबन्धमें जिस प्रकार कहे हैं उस प्रकार जानने चाहिये विशेषार्थ-यहाँ किस कर्मको किस प्रकारसे विभाग होकर द्रव्य मिलता है इस बीजपदका दो गाथाओं द्वारा निर्देश किया है। ये दो गाथाएँ श्वे०कर्मप्रकृतिमें भी उपलब्ध होती हैं। उनका आशय यह है कि प्रदेशबन्धके होने पर जो द्रव्य मिलता है, उसका अनन्तवाँ भाग सर्वघाति द्रव्य है और शेष बहुभाग देशघाति द्रव्य है। यहाँ देशघाति द्रव्यके विभागका मुख्यरूपसे विचार किया है। तात्पर्य यह है कि ज्ञानावरणको जो देशघाति द्रव्य मिलता है वह चार भागोंमें विभक्त हो जाता है। जो क्रमसे आभिनिबोधिकज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, और मनःपर्ययज्ञानावरणमें विभक्त हो जाता है। दर्शनावरणको जो द्रव्य मिलता है वह चक्षुदर्शनावरण, अचक्ष दर्शनावरण, और अवधिदर्शनावरण रूप होकर तीन १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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