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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे
सत्याणभंगो। एवं सादिः । एवं खुज०-वामण । णवरिणqस० णियमा अणंत०ही। चदुसंघ० चदुसंठाणभंगो। असंप० णाणावरणभंगो हेहा उवरि । णाम० सत्थाणभंगो। एवं एइंदि०-थावर० ।
१६०. आदाव० उ० बं०' पंचणा०-णवदंसणा-मिच्छ०-सोलसक०-णqस०भय-दु०-णीचा०-पंचंत० णि० अणंतगुणही। सादासाद०-चदुणोक० सिया० अणंत०ही। णाम० सत्थाणभंगो ।
१६१. उज्जो० उ० बं० पंचणा०-णवदंसणा०-सादावे-मिच्छ०--सोलसक०पुरिस०-हस्स-रदि-भय-दु०-णीचा०-पंचंत० णिय० अणंत ही० । णाम सत्थाणभंगो ।
१६२. अप्पसत्थवि०-दुस्सर० उ० बं० हेहा उवरि णिरयगदिभंगो। णाम० सत्थाणभंगो।
१६३. सुहुम०-अपज्जत्त--साधार० उ० बं० पंचणा०--णवदंसणा०-असादी०
अनन्तगुणा हीन होता है। स्त्रीवेद और नपुसकवेदका कदाचित् बन्ध करता है जो अनुत्कृष्ट अनन्तगुणा हीन होता है। नामकर्मका भंग स्वस्थान सन्निकर्षके समान है। इसी प्रकार स्वातिसंस्थानकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार कुब्जक और वामन संस्थानकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यह नपुंसकवेदका नियमसे बन्ध करता है जो अनुत्कृष्ट अनन्तगुणा हीन होता है। चार संहननका भंग चार संस्थानके समान है। असम्प्राप्तासृपाटिका संहननका भंग नामकर्मसे पहलेकी और आगेकी प्रकृतियोंकी अपेक्षा ज्ञानावरणके समान है। नामकमेका भंग स्वस्थान सन्निकर्षके समान है। इसी प्रकार अर्थात् असप्राप्तामृपाटिका संहननके समान एकेन्द्रिय जाति और स्थावर प्रकृतिकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
१६०. आतप प्रकृतिके उत्कृष्ट अनुभागका. बन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, भय, जुगुप्सा, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो अनुत्कृष्ट अनन्तगुणा हीन होता है। सातावेदनीय, असातावेदनीय और चार नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है जो अनुत्कृष्ट अनन्तगुणा हीन होता है । नामकर्मका भङ्ग स्वस्थान सन्निकर्षके समान है।
५६१. उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो अनुत्कृष्ट अनन्तगुणा हीन होता है। नामकर्मका भङ्ग स्वस्थान सन्निकर्षके समान है।
१६२. अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाले जीवके नामकर्मसे पूर्वकी और आगेकी प्रकृतियोंका भङ्ग नरकगतिके समान है। नामकर्मका भंग स्वस्थान सन्निकर्षके समान है।
१६३. सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला, जीव पाँच
१. श्रा० प्रती एइंदि० श्रादाव थावर उ० बं० इति पाठः। २. ता. प्रतौ पंचणा० असादा इति पाठः।
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