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महाबँधे अणुभागबंधाहियारे
तेजा ० क० - पसत्थ०४ - अगु०३ – उज्जो ० - बादर - पज्जत्त - पत्ते ० - णिमिणं ति । आदावं एवं चेव । णवरि एइंदि० - थावर० णिय अनंतगुणन्भ० । चदुसंठा० चदुसंघ० दोविहा०सुभग- दोसर -अणादें पढमपुढविभंगो ।
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१११. हुंड० ज० बं० दोगदि - एइंदि० - वस्संघ० - दोआणु ०--दोविहा०-- थावरथिरादिछयुग० सिया० । तं तु० । पंचिंदि० --ओरालि० अंगो० - आदाउज्जो ० सिया० अनंतगुणभ० । ओरालि० तेजा० क० - पसत्थापसत्थ०४- अगु०४ - बादर - पज्जत्तपत्ते० - णिमि० णि० अनंतगु० । एवं हुंडभंगो दूभग-- अणादें । अप्पसत्थ०४ - उप० णिरयभंगो ।
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११२. थिर० ज० बं० दोगदि एइंदि० छस्संठा ० - इस्संघ० - दोआणु ० दोविहा थावर० - सुभादिपंचयुग० सिया० । तं तु० । पंचिं०--ओरालि० अंगो० - आदाउज्जो०तस ० - तित्थ० सिया० अनंतगुणब्भ० । ओरालि०- तेजा ० क० - पसत्थापसत्थ०४अगु०४ - बादर ० -- पज्जत्त - पत्ते ० - णिमि० णि० अनंतगुणभ० । एवं अथिर - सुभासुभजस० - अजस० । तित्थ० णिरयभंगो ।
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का भी बन्ध करता है । यदि अजघन्य अनुभागका बन्ध करता है, तो वह छह स्थान पतित वृद्धिरूप होता है । इसी प्रकार तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, उद्योत, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। श्रातपकी मुख्यता से भी सन्नि कर्ष इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रियजाति और स्थावरका नियम से बन्ध करता है जो अनन्तगुणा अधिक होता है । चार संस्थान, चार संहनन, दो विहायोगति, सुभग, दो स्वर और अनादेयका भङ्ग पहली पृथिवीके समान है।
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१११. हुण्डसंस्थानके जघन्य अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव दो गति, एकेन्द्रिय जाति, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, स्थावर और स्थिर आदि छह युगलका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है, तो जघन्य अनुभागका भी बन्ध करता है और अजघन्य अनुभागका भी बन्ध करता है । यदि अजघन्य अनुभागका बन्ध करता है, तो वह छह स्थान पतित वृद्धिरूप होता है । पचन्द्रिय जाति, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, आतप, उद्योत और त्रसका कदाचित् बन्ध करता है जो अनन्तगुणा अधिक होता है । औदारिक शरीर, तैजसशरीर, कार्मण शरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है जो अनन्तगुणा अधिक होता है। इसी प्रकार हुण्ड संस्थानके समान दुर्भग, नादेय की मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। अप्रशस्त वर्णचतुष्क और उपघातकी मुख्यता से सन्निकर्ष नारकियोंके समान है ।
११२. स्थिर प्रकृतिके जघन्य अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव दो गति, एकेन्द्रिय जाति, छह संस्थान, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, स्थावर और शुभादि पाँच युगलका कदाचित् बन्ध करता है। किन्तु वह जघन्य अनुभागका भी बन्ध करता है और अजघन्य अनुभागका भी बन्ध करता है । यदि अजघन्य अनुभागका बन्ध करता है, तो वह छह स्थान प वृद्धिरूप होता है | पञ्चेन्द्रिय जाति, श्रदारिक आङ्गोपाङ्ग, आतप, उद्योत, त्रस और तीर्थङ्करका कदाचित् बन्ध करता है जो अनन्तगुणा अधिक होता है । औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है जो अनन्तगुणा अधिक होता है । इसी प्रकार अस्थिर, शुभ, अशुभ, यशः कीर्ति और अयशःकीर्तिकी मुख्यतासे सन्निकर्षं जानना चाहिए। तीर्थङ्कर
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