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________________ ४०६ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ६६२. ऍत्तो तिरिक्खगदिणामाए तिव्वमंदं वत्तइस्सामो। तं जहा–सत्तमाए पुढवीए णेरइगस्स तिरिक्खगदिणामाए सव्वजहण्णयं हिदि बंधमाणस्स जह० वि० ज० पदे' जह० अणु० थोवा । विदिया० हिदी० जह० अणु० अणंतगु० । एवं जह० अणु० अणंतगुणाए सेडीए गदा याव ताव णिव्वग्गणकंडयमेत्तीओ हिदीओ। तदो ज० ट्ठि० उ० पदे० उक्क० अणु० अणंतगुः । तदो यदो णियत्तो तदो समउत्तराए हिदी. जह० अणु० अणंतगु० । विदिया० हिदी० उक्क० अणु० अणंतगु० । एवं णिव्वग्गणकंडयमेत्तेण अणंतरेण उवरिमाए हिदीए जह० अणुभा० हेहिमाए हिदीए उक्क० अणु० । एवं णीदं याव ताव अब्भव० पाओग्गजहण्णयस्स हिदिबंधस्स हेढादो समऊणाए हिदि त्ति । तदो अब्भव०पाओग्गजहण्णहिदिबंधस्स हेट्ठा णिव्वग्गणकंडयमेंत्तीणं द्वि० उक्क० अणु० ण भणिदा। सेसं सव्वं भणिदं । हेहिमाणं द्विदीणं एदाओ च हेहिमा० विदीओ ण सव्वाओ णिरंतराओ संपत्तीदो। णवरि परूवणाए दु णिरंतराणि भणिदं संपत्तीदो। अब्भव०पाओग्ग० हेटा याणि हिदिबंधटाणाणि ताणि भागवाली स्थितियों में से उत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्ट अनुभागके प्राप्त होने तक गया है। पुनः आगे जिस स्थिति तक जघन्य अनुभाग कहा गया है,उससे अगली स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । तथा इससे अधस्तन जिन स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग कहा गया है, उससे अगली स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । इस प्रकार असातावेदनीय की उत्कृष्ट स्थितिके जघन्य अनुभागके अनन्तगुणे प्राप्त होने तक जानना चाहिए । यहाँ सब स्थितियोंका जघन्य अनुभाग तो कहा जा चुका है,पर अन्तकी निर्वगेणाकाण्डक प्रमाण स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग नहीं कहा गया है, इसलिए उत्कृष्ट स्थितिके जघन्य अनुभागसे जिन स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग नहीं कहा गया है, उन स्थितियों में से जघन्य स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा कहना चाहिए । पुनः इससे आगेकी स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा कहना चाहिए। इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्ट अनुभागके प्राप्त होने तक यही क्रम जानना चाहिए। इस प्रकार असातावेदनीयकी अपेक्षा तीव्रमन्दका विचार किया। इसी प्रकार मूलमें गिनाई नरकगति आदि अन्य प्रकृतियोंकी अपेक्षा तीव्रमन्दका विचार होनेसे उनका कथन असातावेदनीयके समान जाननेकी सूचना की है। ६६२. आगे तिर्यञ्चगति नाम कर्मके तीवमन्दको बतलाते हैं। यथा-सातवीं पृथिवीमें तिर्यश्चगति नामकर्मकी सबसे जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले नारकीके जघन्य स्थितिके जघन्य पदमें जघन्य अनुभाग सबसे स्तोक हैं। उससे दूसरी स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । इस प्रकार निर्वर्गणाकाण्डकमात्र स्थितियों के प्राप्त होने तक जघन्य अनुभाग अनन्तगुणित श्रेणिरूपसे गया है। उससे जघन्य स्थितिके उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे जहाँसे लौटे है,उससं एक समय आंधक स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे दूसरी स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । इस प्रकार अभव्य प्रायोग्य जघन्य स्थितिबन्धके पूर्व एक समय कम स्थितिके प्राप्त होने तक निर्वगणाकाण्डकमात्रके अन्तरालसे उपरिम स्थितिका जघन्य अनुभाग और अधस्तन स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग इसी क्रमसे ले जाना चाहिए। यहाँ अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबन्धके पूर्वको निर्वर्गणाकाण्डकमात्र स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग नहीं कहा गया है, शेष सब कहा गया है। अधस्तन स्थितियोंमेंसे ये सब अधस्तन स्थितियाँ निरन्तर नहीं प्राप्त होती हैं । इतनी विशेषता है कि प्ररूपणामें इनकी निरन्तर प्राप्ति कही गई १. आ० प्रतौ जह• हि० पदे इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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