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________________ तिश्वमंदपरूवणा अणंतगु० । हेट्ठिमाणं ऍकिस्से द्विदीए उक्क० अणुभा० अणंतगु० । एदेण कमेण एक्कका द्विदी ओगसिदा आगदं' याव असादस्स उक्क० हिदीए जहण्णपदै जह. अणु० अणंतगु० ताधे असादबंध० हिदी० गिट्ठावणियाणि णिव्वग्गणकंडयमेंतीणं हिदीणं उक्क० अणु० ण भाणिदव्वा । सेसाणं सव्वासि हिदीणं उक्क० अणु० भणिदा । तदो यासिं हिदीणं उक्कस्सअणुभा० ण भणिदा तासिं हिदीणं जहणिया हिदी तिस्से हिंदीए उक्क० अणु० अणंतगु० । तदो समउत्तराए हिदीए उक. अणु० अणंतगु० । विसमउत्तराए हिदीए उक्क० अणु० अणंतगु० । तिसमउ० ट्ठि० उ० अणु० अणंतगु० । एवं अणुबंध० उक्क० अणु० अणंतगु० ताव याव उक्क० हि० उ० पदे उ० अणु० अणंतगु० । णिरयगदि-चदुजादि-पंचसंठा०-पंचसंघ०-णिरयाणु०-अप्पसत्थ०-थावर-सुहुम-अपज. साधार०-अथिर-असुभ-दूभग-दुस्सर-अणादें-अजस० एवं [अ] सादभंगो २८ । जघन्य स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । इससे अधस्तन स्थितियों में से एक स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । इस क्रमसे एक-एक स्थिति कम होती हुई जब असातावेदनीय की उत्कृष्ट स्थितिके जघन्य पदमें जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है, यह स्थान प्राप्त होता है तब जाकर असातावेदनीयकी बन्धस्थितियों द्वारा निष्ठापित निवर्गणाकाण्डकमात्र स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग नहीं कहा गया है। शेष सब स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग कहा गया है। इसलिए जिन स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग नहीं कहा गया है, उन स्थितियों में जो जघन्य स्थिति है उस स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे एक समय अधिकवाली स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे दो समय अधिकवाली स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगणा है। उससे तीन समय अधिकवाली स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है,इस स्थानके प्राप्त होने तक अनुभागबन्धकी अपेक्षा उत्तरोत्तर प्रत्येक स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा जानना चाहिए। इस प्रकार असातावेदनीयके समान नरकगात, चार जाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, नरकगत्यानुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण अस्थिर, अशुभ दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और अयशःकीर्तिका तीब्रमन्द जानना चाहिए। विशेषार्थ—यहाँ पहले असातावेदनीयकी जघन्य स्थितिसे लेकर सौ सागरपृथक्त्वप्रमाण स्थितियोंका जघन्य अनुभाग समान कहा है। इससे भागे निर्वर्गणाकाण्डककी असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितियोंका जघन्य अनुभाग प्रत्येक स्थितिकी अपेक्षा अनन्तगुणा कहा है। फिर यहाँ अन्तमें प्राप्त हुई स्थितिके जघन्य अनुभागसे जघन्य स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा कहा है। फिर इस जघन्य स्थितिके आगे निर्वर्गणाकाण्डक प्रमाण स्थितियों में प्रत्येक स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा-अनन्तगुणा कहा है। इस प्रकार जघन्य स्थितिसे लेकर निर्वर्गणाकाण्डक प्रमाण स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग कहकर यहाँ अन्तकी स्थितिके उत्कृष्ट अनुभागसे जिस स्थितिके जघन्य अनुभागसे लौटकर जघन्य स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा कहा थ अगली स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । पुनःइससे अधस्तन दूसरे निर्वर्गणाकाण्डक प्रमाण स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग उत्तरोत्तर अनन्तगुणा है । पुनः इससे उपरिम एक स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार उपरिम एक स्थितिका जघन्य अनुभाग और अधस्तन निर्वगणाकाण्डक प्रमाण स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा होता हुआ ओघ जघन्य अनु १. आ० प्रतौ ओघसिद्धा आगदं इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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