SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिदिसमुदाहारो ३९७ तदेगदेसो च अण्णाणि च । तदो उक्कस्सियाए द्विदीए अणुक्कड्डी बोच्छिादि' । जम्हि उक्कस्सिए द्विदीए अणुक्कड्डी वोच्छिण्णा तदो से काले समऊणाए द्विदीए अणुक्कड्डी वोच्छिादि । यम्हि समऊणाए द्विदीए अणुक्कड्डी वोच्छिण्णा तदो से काले विसमऊणाए द्विदीए अणुक्कड्डी वोच्छिादि । जम्हि विसमऊणाए द्विदीए अणुक्कड्डी वोच्छिण्णा तदो से काले तिसमऊ० अणुक्कड्डी वोच्छिादि । एवं याव ओरालियसरीरस्स जहणियाए हिदि त्ति । पंचण्णं सरीराणं तिण्णमंगोवंगाणं पसत्थ०४ अगु० पर० उस्सा० आदाउजो० णिमि० तित्थयरस्स च ओरालियसभंगो।। ६५८. एत्तो पंचिंदियणामाए अणुक्कडिं वत्तइस्सामो। तं जहा—पंचिंदियणामाए उक्कस्सियं हिदि बंधमाणस्स याणि अणुभागबंधज्झवसाणाणि तदो समऊणाए द्विदीए तदेगदेसो च अण्णाणि च । तदो विसमऊणाए द्विदीए तदेगदेसो च अण्णाणि च। तदो तिसमऊणाए' हिदीए तदेगदेसो च अण्णाणि च । एवं पलि. असंखेंजदिभागो तदेगदेसो च अण्णाणि च । तदो उक्कस्सियाए हिदीए अणुक्कड्डी गिट्ठायदि । यम्हि उक्कस्सियाए हिदीए अणुक्कड्डी णिढिदा तदो से काले समऊणाए हिदीए अणुकही गिट्ठायदि । यम्हि समऊणाए हिदीए अणुक्कड्डी णिट्टिदा तदो से काले विसमऊणाए हिदीए अणुक्कड्डी गिट्ठायदि । यम्हि विसमऊणाए हिदीए अणुक्कड्डी णिहिदा पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितियोंमेंसे प्रत्येक स्थितिके पूर्व- पूर्व अनुभागबन्धाध्यवसान स्थानोंका एकदेश और अन्य अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं । तब जाकर उत्कृष्ट स्थितिकी अनुकृष्टि व्युच्छिन्न होती है । जहाँ उत्कृष्ट स्थितिकी अनुकृष्ट व्युच्छिन्न हुई है, उससे अगले समयमें एक समय कम स्थितिकी अनुकृष्टि व्युच्छिन्न होती है । जहाँ एक समय कम स्थितिकी अनुकृष्टि व्युच्छिन्न हुई है,उससे अगले समयमें दो समय कम स्थितिकी अनुकृष्टि व्युच्छिन्न होती है। जहाँ दो समय कम स्थितिकी अनुकृष्टि व्युच्छिन्न हुई है,उससे अगले समयमें तीन समय थतिकी अनुकृष्टि व्यच्छिन्न होती है। इस प्रकार औदारिकशरीरकी जघन्य स्थितिके प्राप्त होने तक जानना चाहिए । पाँच शरीर, तीन आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, परघात, उच्छ्रास, आतप, उद्योत, निर्माण और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग औदारिकशरीरके समान है। ६५८. आगे पञ्चेन्द्रियजातिकी अनुकृष्टिको बतलाते हैं । यथा-पञ्चेन्द्रियजातिकी उत्कृष्ट स्थितिको बाँधनेवालेके जो अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं, उनसे एक समय कम स्थितिके उनका एकदेश और अन्य अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान होते हैं। उनसे दो समय कम स्थितिके उनका एकदेश और अन्य अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं। उनसे तीन समय कम स्थितिके उनका एकदेश और अन्य अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं। इस प्रकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कम स्थितिके प्राप्त होने तक प्रत्येक स्थितिके पूर्व-पूर्वका एकदेश और अन्य अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं। तब जाकर उत्कृष्ट स्थितिकी अनुकृष्टि समाप्त होती है। जहाँ उत्कृष्ट स्थितिकी अनुकृष्टि समाप्त हुई है, उससे अगले समयमें एक समय कम स्थितिकी अनुकृष्टि समाप्त होती है। जहाँ एक समय कम स्थितिकी अनुकृष्टि समाप्त हुई है, उससे अगले समयमें दो समय कम स्थितिकी अनुकृष्टि समाप्त होती है। जहाँ दो समय कम स्थितिकी अनुकृष्टि समाप्त हुई है,उससे अगले समयमें तीन समय कम स्थितिकी १. ता. प्रतौ अणुकड्डी वा छिजदि इति पाठः। २. ता० प्रतौ तदो समऊणाए इति पाठः। है. ता० प्रती याम्ही इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy