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________________ ३९२ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे तिणं' आउगवजाणं सव्वपसत्थपगदीणं उक्कस्सियाए द्विदीए उक्कस्सए कसाउदयट्ठाणे अणुभा०हिंतो तदो असंखेंजा लोगं गंतूण दुगुणवड्डिः । एवं दुगुणवड्डिदा याव , जहणियाए द्विदीए जह• कसाउदयट्ठाणे त्ति । एगअणुभागबंधज्झवसाणदुगुणवड्डिहाणिट्ठाणंतरं असंखेंजा लोगा। णाणाअणुभा०दुगुणवड्डि-हाणिट्ठाणंतराणि आवलि० असंखेजदिभागो। णाणा०अणुभा०दुगुणवड्डि-हाणिट्ठाणंतराणि थोवाणि | एगअणुभा० दुगुणवड्डि-हाणिहाणंतरं असंखेंजगुणं । एवं आउगवजाणं पगदीणं एदेण बीजेण याव अणाहारए त्ति णेदव्वं । एवं परंपरोवणिधा समत्ता । एवं द्विदिसमुदाहारो सभत्तो। तिब्वमंददाए अणुकड्डी ६५३. एत्तो तिव्वमंददाए पुव्वं गमणिशं अणुकड्डिं वत्तइस्सामो। तं जहासण्णीहि पगदं । अब्भवसिद्धियपाओग्गं जहण्णगे बंधगे मदियावरणस्स जहण्णट्ठिदिबंधमाणस्स याणि अणुभागबंधज्झवसागट्ठाणाणि विदियाए द्विदीए तदेगदेसो वा अण्णाणि च । तदियाए हिदीए तदेगदेसो वा अण्णाणि च । एवं पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो तदेगदेसो वा अण्णाणि च । एवं जहणियाए हिदीए अणुक्कड्डी । जम्हि जहणियाए हिदीए अणुक्कड्डी णिढिदा तदो से काले विदियाए हिदीए अणुकड्डी णिट्ठियदि । जह्मि विदियाए हिदीए अणुक्कड्डी णिविदा तदो से काले 'तदियाए द्विदीए तियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्ट उदयस्थानमें अनुभाग अध्यवसान स्थानोंसे लेकर असंख्यात लोकप्रमाण स्थान जाकर द्विगुणी वृद्धि होती है। इस प्रकार जघन्य स्थितिके जघन्य कषाय उदयस्थानके प्राप्त होने तक द्विगुणी द्विगुणी वृद्धि होती है । एक अनुभागबन्धाध्यवसानद्विगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। नानाअनुभागवन्धाध्यवसानद्विगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। नाना अनुभागबन्धाध्यवसानद्विगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर स्तोक है। इनसे एकअनुभागबन्धाध्यवसानद्विगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है। इस प्रकार आयुके सिवा सब प्रकृतियोंका इस बीजपदके अनुसार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । इस प्रकार परम्परोपनिधा समाप्त हुई। इस प्रकार स्थितिसमुदाहार समाप्त हुआ। ६५३. आगे तीव्रमन्दका पहले विचार करना है। उसमें अनुकृष्टिको बतलाते हैं। यथा-संज्ञी जीव प्रकृत हैं। अभव्योंके योग्य जघन्य बन्धकमें मतिज्ञानावरणकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवके जो अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं, द्वितीय स्थितिमें उनका एकदेश और अन्य . अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते है। तीसरी स्थितिमें उनका एकदेश और अन्य अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते है। इस प्रकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थिति विकल्पोंके प्राप्त होने तक उनका एकदेश और अन्य अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते है। इस प्रकार जघन्य स्थितिमें अनुकृष्टि जाननी चाहिए। जघन्य स्थितिमें जहाँ अनुकृष्टि समाप्त होती है, उससे अनन्तर समयमें द्वितीय स्थितिमें अनुकृष्टि समाप्त होती है। जहाँ दूसरी स्थितिमें अनुकृष्टि समाप्त होती है, उससे अनन्तरसमयमें तीसरी स्थितिमें १. ता. प्रतौ ति स्सादीणं ( ? ) तिण्णं इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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