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________________ हिदिसमुदाहारो ३९१ आउगवजाणं सव्वत्थोवा उक्कस्सियाए हिदीए उक्कस्सिए कसाउदयट्ठाणे अणुभागबंधज्झवसाण । उक्क० विदीए समऊणे कसाउद० विसे । उक० द्विदी• विसमऊणे कसाउ० विसे० । उक्क० द्विदी० तिसमऊ. विसे० । एवं विसे० विसे० याव जहण्णयं कसाउदयट्ठाणं ति । एवं याव जहणियाए हिदीए जहण्णय कसाउदयट्ठाणं ति।। ६५१. णिरयाउ० कसाउदयट्ठाणे अणुभागवंधज्झवसाणट्ठाणाणि थोवाणि । विदिए कसाउद० अणुभाग ज्झवसा० असं गु० । तदिए कसाउदयट्ठाणे अणुभा० असंगु० । एवं असंखेंजगुणाणि असंखेंगु० याव उक्क०द्विदि त्ति । तिण्णं आउगाणं उक्कस्सियाए कसाउदयट्ठाणे अणुभागबंधज्झवसाणट्ठाणाणि थोवाणि । समऊणे कसाउद० अणुभा० [अ] संखेंजगुणाणि । विसमऊ. कसाउद० अणुभा० असं०गु०। तिसमऊ. कसाउ० अणुभा० असं०गु० । एवमसंखेंजगुणाणि असं०गु० याव जहण्णयं कसाउदयट्ठाणं ति । एवं एदेण बीजेण याव अणाहारए त्ति णेदव्वं ।। ६५२. परंपरोवणिधाए दुवि०। ओघे मदियावरणादणं णिरयाउगवजाणं सव्वअप्पसत्थपगदीणं जहणियाए हिदीए जहण्णए कसाउदयट्ठाणे जहण्णगं अणुभागबंधज्यवसाणहाणेहिंतो तदो असंखेंजा लोगं गंतूण दुगुणवड्डिदा । एवं दुगुणवड्डिदा दुगुणवड्डिदा याव उक्कस्सिया हिदीए उक्कस्सिए कसाउदयट्ठाणे त्ति । सादादीणं प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्ट कषाय उदयस्थानमें अनुभागबन्धाध्यक्सानस्थान सबसे थोड़े होते हैं। उनसे उत्कृष्ट स्थितिके एक समय कम कषाय उदयस्थानमें वे विशेष हीन होते है। उनसे उत्कृष्ट स्थितिके दो समय कम कषाय उदयस्थानमें वे विशेष हीन होते हैं। उनसे उत्कृष्ट स्थितिके तीन समय कम कषाय उदयस्थानमें वे विशेष हीन होते है। इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके जघन्य कषाय उदयस्थानके प्राप्त होने तक वे विशेष हीन विशेष हीन होते हैं। इसी प्रकार जघन्य स्थितिके जघन्य कषाय उदयस्थानके प्राप्त होने तक जानना चाहिए। ___६५१. नरकायुके जघन्य कषाय उदयस्थानमें अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान स्तोक है। इनसे दूसरे कषाय उदयस्थानमें अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं। इनसे तीसरे कषाय उदयस्थानमें अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं । इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके प्राप्त होने तक वे असंख्यातगुणे असंख्यातगुणे हैं। तीन आयुओंके उत्कृष्ट कषाय उदयस्थानमें अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान थोड़े है। उनसे एक समय कम कषाय उदयस्थानमें अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे दो समय कम कषाय उदयस्थानमें अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान. असंख्यातगुणे हैं। उनसे तीन समय कम कषाय उदयस्थानमें अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे है। इस प्रकार जघन्य कषाय उदयस्थानके प्राप्त होने तक असंख्यातगुणे असंख्यातगुणे अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान है। इस प्रकार इस बीज पदके अनुसार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए । ६५२. परम्परोपनिधाकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे नरकायुके सिवा मतिज्ञानावरण आदि सब अप्रशस्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके जघन्य कषाय उदयस्थानमें जघन्य अनुभागबन्धाध्यवसान स्थानोंसे लेकर असंख्यात लोकप्रमाण स्थान जाकर द्विगुणी वृद्धि होती है। इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्ट कषाय उदयस्थानके प्राप्त होने तक द्विगुणी द्विगुणी वृद्धि होती है। तीन आयुओंके सिवा सातावेदनीय आदि सब प्रशस्त प्रक For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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