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________________ ३७८ महावंचे अणुभागबंधाहियारे सव्वबहूणि अणुभागबंधझवसाणट्ठाणाणि साद० । जस०-उच्चा० अणुभागबंध० असं०गुणहीणाणि । देवगदि० अणुभा० असं०गुणही० । कम्म० असं०गुणही० । तेजा० असं०गुणही । आहार० असं०गुणही । वेउव्वि० असं गुणही । मणुस० असं०गुणही० । ओरा० असं०गु० । मिच्छ० असं०गु० । केवलणा०-केवलदं०-विरियंत० तिणि वि तु० असं०गु० । असादा० विसेसहीणाणि । अणंताणुवं०लोभे असं०गु० । माया० विसे० । कोघे० विसे० । माणे० विसे० । संजलणलोभे० असंगु० । माया. विसे । कोधे विसे० । माणे० विसे० । पञ्चक्खाण लोभे० असं०गु० । माया० विसे० । कोघे० विसे० । माणे० विसे० । अपञ्चक्खाणलोभे० असं०गु० । माया० विसे० । कोधे० विसे० । माणे० विसे० । आभिणि-परिभो० दो वि तु० असं०गु० । चक्खु० असं०गु० । सुद०-अचक्खु०-भोगंत० तिष्णि वि तु० असं०गु० । ओधिणा० ओघ और आदेश । ओघसे यहाँ चौंसठ पदिक दण्डक है। यथा-सातावेदनीयके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बहुत है। इससे यशकीर्ति और उच्चगोत्रके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे देवगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे कार्मणशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे तैजसशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे आहारकशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे वैक्रियिकशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे मनुष्यगतिके अनुभागबन्ध्यावसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे औदारिकशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे मिथ्यात्वके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण और वीर्यान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान तीनों ही प्रकृतियोंके परस्पर तुल्य होकर असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे असातावेदनीयके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी लोभके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी मायाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी क्रोधके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी मानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन है । इनसे संज्वलन लोभके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यालगुणे हीन है। इनसे संज्वलन मायाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे संज्वलन क्रोधके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन है। इनसे संज्वलन मानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन है । इनसे प्रत्याख्यानावरण लोभके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे प्रत्याख्यानावरण मायाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे प्रत्याख्यानावरण क्रोधके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे प्रत्याख्यानावरण मानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन है। इनसे अप्रत्याख्यानावरण लोभके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे अप्रत्याख्यानावरण 'मायाके अनुभागबन्धाध्ययसान स्थान विशेष होन है। इनसे अप्रत्याख्यानावरण क्रोधके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन है । इनसे अप्रत्याख्यानावरण मानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन है। इनसे आभिनिबोधिक ज्ञानावरण और परिभोगान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हीन है। इनसे चक्षुदर्शनावरणके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे श्रुतज्ञानावरण, अचक्षुदर्शनावरण और भोगान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान तीनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे अवधिज्ञानावरण, अवधिदर्शना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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