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________________ ३७५ पयडिसमुदाहारो ६३२. सव्वबहूणि देवाउ० अणुभाग० । णिरयाउ० अणुभा० असं०गुणही० । मणुसाउ० असं०गुणही० । तिरिक्खाउ० असं०गुणही० । ६३३. सव्वबहूणि देवग० अणुभा० । मणुस० असं०गुणही० । णिरय० असं०गुणही। तिरिक्खग० असं०गुणही० । सव्वबहूणि पंचिंदि० अणुभा० । एइंदि० असं०गुणही० । बीइंदि० असं०गुणही० । तीइंदि० असं०गुणही० । चदुरि० असं०गुणही । सव्वबहूणि कम्मइ० अणुभा० । तेजा. असं०गुणही । आहार० असं० गुणही। वेउवि० असं०गुणही। ओरा० असं०गुणहो । सव्वबहूणि समचदु० अणुभा० । हुंड० असं०गुणही० । णग्गोद० असं०गुणही० । सादि'. असं०गुणही । खुज० असं०गुणही० । वामण. असं०गुणही। सव्वबहूणि आहार०अंगो. अणुभा० । वेउव्वि० अंगो० असं०गुणही० । [ओरालियअंगो० असं०गुव्ही. 1] संघडणाणं संठाणभंगो । सव्वबहूणि पसत्थवण्ण०४ अणुभा० । अप्पसत्थव०४ असं० ६३२. देवायुके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बहुत है । इनसे नरकायुके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे मनुष्यायुके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । इनसे तिर्यश्चायुके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। ६३३. देवगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बहुत है। इनसे मनुष्यगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे नरकगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे तिर्यश्चगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। पंचेन्द्रियजातिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बहुत है। इनसे एकेन्द्रियजातिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुण होन है। इनसे द्वीन्द्रिय जातिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे त्रीन्द्रियजातिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे चतुरिन्द्रियजातिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। कार्मणशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बहुत है । इनसे तैजसशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे आहारकशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे वैक्रियिकशरीरके अनुभागबन्धाध वसानस्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे औदारिकशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । समचतुरस्रसंस्थानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बहुत है। इनसे हुण्डसंस्थानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे स्वातिसंस्थानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे कुब्जक संस्थानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे वामन संस्थानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। आहारक आङ्गोपाङ्गके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बहुत है। इनसे वैक्रियिक आङ्गोपाङ्गके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे औदारिक आङ्गोपाङ्ग के अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। संहननोंका भङ्ग संस्थानोंके समान है। प्रशस्त वर्णचतुष्कके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बह हैं। इनसे अप्रशस्त वर्णचतुष्कके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। १. ता. प्रतौ सादा० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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