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________________ पदणिक्खेवे सामित्तं ३५१ भागेण तिणि वि० । सेसं देवोधभंगो। आहार०-आहारमि० सव्वट्ठभंगो । कम्मइ० पढमदंडओ ज० वड्डी क० ? अण्ण० चदुगदि० सम्मादि० । सेसाणं देवभंगो । एवं अणाहारए ति । ५९५. इत्थिवेदे पढमदंडओ अणियट्टिखवग० । थीणगिद्धिदंडओ ओघ । साददंडओ तिगदियस्स । अट्ठक० ओघ । इत्थि०-णस० तिगदि० । अरदि-सोगं ओघं । चदुआउ-दोगदि-तिण्णिजा०-दोआणु०-थावरादि०४–आहार२-तित्थ० ओघं० । दोगदि-एइंदि०-छस्संठाण-[छस्संघ०-दोआणु०-] दोविहा०—मज्झिल्ल तिष्णियु०दोगो० तिगदि० । पंचिं०-वेउवि०-वेउवि अंगो-तस० ज० वड्डी क० ? अण्ण. दुगदिय० सव्वसंकि० । ओरा०-[ओरालि अंगो०-] आदाउजो० ज० वड्डी क० ? अण्ण० देवीए संकिलिट्ठ० । तेजा०-क०-पसत्थ०४-अगु०३-बादर-पजत्त-पत्ते०णिमि० ज० वड्डी क० ? अण्ण तिगदिय० तप्पा०संकिलिः । [सेसं ओघ । पुरिसेसु पढमदंडओ इस्थिवेदभंगो। सेसं पंचिंदियभंगो। णवरि तिरिक्खगदितिगं मणुसिभंगो। ५९६. णqसगे पढमदंडओ इत्थिभंगो । दोगदि-चदुजादि-दोआणु०-थावरादि४ समयमें शरीरपर्याप्तिको प्राप्त होगा वह अनन्तभाग वृद्धि, हानि और अनन्तर अवस्थानरूपसे स्त्यानगृद्धिदण्डकके तीनों ही पदोंका स्वामी है । शेष भंग सामान्य देवोंके समान है। आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सर्वार्थसिद्धिके समान भंग है। कार्मणकाययोगी जीवोंमें प्रथम दण्डककी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर चार गतिका सम्यग्दृष्टि जीव स्वामी है। शेष प्रकृतियोंका भंग देवोंके समान है। इसी प्रकार अनाहारक जीवोके जानना चाहिए। ५९५. स्त्रीवेदी जीवोंमें प्रथम दण्डकका स्वामी अनिवृत्तिकरण क्षपक जीव है। स्त्यानगृद्धिदण्डकका भङ्ग ओघके समान है। सातावेदनीयदण्डकका स्वामी तीन गतिका जीव है। आठ कषायोंका भङ्ग ओघके समान है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका स्वामी तीन गतिका जीव है। अरति और शोकका भङ्ग ओघके समान है। चार आयु, दो गति, तीन जाति, दो आनुपूर्वी, स्थावर आदि चार, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। दो गति, एकेन्द्रियजाति, छह संस्थान, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, मध्यके तीन युगल और दो गोत्रके तीनों पदोंका स्वामी तीनों गतिका जीव है। पञ्चेद्रियजाति वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिकआङ्गोपाङ्ग और त्रसकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? सर्वसंक्लिष्ट अन्यतरदो गतिका जीव तीनों पदोंका स्वामी है। औदारिकशरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, आतप और उद्योतकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? सर्वसंक्लिष्ट अन्यतर देवी तीनों पदोंकी स्वामी है। तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है? तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट अन्यतर तीन गतिक तीनों पदोंका स्वामी है। शेष भङ्ग ओघके समान है । पुरुषवेदी जीवोंमें प्रथम दण्डकका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। शेष भंग पञ्चेन्द्रियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि तिर्यश्चगतित्रिकका भंग मनुष्यिनियोंके समान है। ५९६. नपुंसकवेदी जीवोंमें प्रथमदण्डकका भंग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। दो गति, चार जाति, दो आनुपूर्वी और स्थावर आदि चारके तीनों पदोंके स्वामी परिबर्तमान मध्यम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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